Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 497
________________ २९७ Catalogue of Sa iskrit. Prakeit Apabhraidsha & Hindi Manuscripts (Puja-Parha-Vidhana) ५) प्र. जै० सा०, पृ० १७२। (६) भा० म०, पृ० १३२ । (7) Catg of Skt. & Pkt Ms, P.662. Opening! Closing: ८६३. पंचपरमेष्ठी पूजा देखे, ऋ० ८७२ । स्फूर्यन मनापतपनःप्रकटीकृतार्यान् धीधर्मभूषणपदावुज चु विताले कर्तव्यमित्युदयता सुयशोभिनदि सूर सदतरूदयी करणक-। हेतु ॥४॥ इति श्री गोदिता पवारमेष्ठि पूजाविधि समाप्ता ।। Colophon ८६४. पंचपरमेष्ठी पूजा Opening भगलमय मंगलकरन, पच परम पद सार । । असरन को एही सरन, उत्तम लोक मशार ।। Closing: मार्गशीर्ष वदि षष्टमी, कुज दिन पूरण भाय । सवत्सर सत अष्टदश, साठ दोय अधिकाय ।। Colophon i इति श्री पचपरमेष्ठि भाषा पूजा सम्पूर्णम् । लिखत सुगनचद श्रावक पाल्मग्राम मध्ये जेष्ठ शुक्ल २ बुधवार सवत् १९२७ । ८६५. पंचपरमेष्ठी विधान Opening! मन रजन भजन करम, पंच परमगुरु सार । पूजित पद सुरनर खगा, पवित है भवपार ।। Closing : चौबीसो जिनदेव के, कल्यानक हितदाय । पृज सो मगल लह परभव शिवपुर पाय ॥ Colophon इति पच कल्यानक पूजा पाठ सपूर्ण सवत् १९९३ - पौष मासे कृष्ण पक्षे गुरुवामरे पुस्तक लिख्यत आरामपुर मध्ये पडित हीरालाल जी.। लिखापित श्राविका वुटो बीी ने । शुभमस्तु ।

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