Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 496
________________ बीजन सिद्धान्त भवन अन्थावली Shri Devakumar Jarð Oriental Librari, Jan'siddkänt Bhavan, Arrab Closing: यस्तावान् शिवपदे ऋशमाकृतोय, - सस्थापयविविधिवर्णयुतेच्युततम् 1. . जगति विदति कीर्तेरामकीर्तसुमप्पी, जिनपतिपदभवतो हर्षनामासुधीर क्वचिन उदयसुनुनेन कल्लाणभूमी' .. 'विधिरयमेवनीमाम.क्षसानसौख्य ददातु ।।" • इति श्री आशीर्वाद । । इति पचमी व्रत उधापन समाप्ता । देखे-(१) दि० जि० न० २०, पृ० १८६ । .' (२)जि. र० को०, पृ० २२७ । : ' (३) रा. सू II, पृ. ६४।। Colophon: . 1, " ! ८६१. पंचमेठ पूजा Opening: मोपडाय - ... प्रतिमा समस्ता ॥ Closing . पचमेरू की औरती ... ... सुख होई ॥ Colophon!.. इति श्री पचमेरू की पूजा जी सम्पूर्ण । ' विशेष-साथ मे नदीश्वर पूजा भी हैं !.: ८९२. पचपरमेष्ठा पूजा inita + Opening I कल्याणकीत्तिकमला - "" प्रवक्ष्ये ।।१।। Closing : सिद्धि वृद्धि समृद्धि प्रथयंतु तरणिस्फूर्यदुच्च प्रताप' - कांति शाति समधि वितरंतु भवतामुत्तमासाधु भक्तिः॥१६॥ Colophon | पचपरमेष्टि पूजाविधान संपूर्णम् ॥६॥ (१८७५ ) अब्देवाण नगाहिशीत किरण संख्या मिते कात्तिकस्थेतोर्वीधराकन्यका सुततियो " शीतापुत्राहनि । पूर्णाकारि जिनेन्द्र भूषणपते शिष्येण संषालिपिगौपक्ष्माभृतिरन्नसागर इति ख्याति : गतेनाच्यया ॥१॥ MAP देखें-(१) दि जि०म०.२०, पृ० १८७ . (२) जि. र० को०, पृ० २२५ ।" (३) रा. सू०,६ ३१४ । samme . . (४) रा. सू० ॥1, पृ०"५७१।

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