Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 499
________________ Opening 1 Closing : Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhratasha & Hindi Manuscripts ( Puja Patha-Vidhāna ) ८६. पंचकल्याणक - उधापन Opening Closing Colophon Opening 1 Closing: Colophong Opening Closing T श्री श्री वीरनाथप्रणवत्यमुद्धविक्ष्ये जिनाना भुविपचकच । कल्याणकाना खलु कर्महान्यं गर्भावतारादिदिनादिर्कश्च ॥ Missing. ९००. पंचकल्याणक पूजा श्री वरमातम कू नमू, नम्र शारदा माय । श्री गुरु कू परणाम करि, रचू पाठसुखदाय ॥ पढे मुन जे नर अरू नारी, पाठ लिखावे जे परवीन । तिनके घर नित मंगल व्यापै, मष्ट करम दुख होवे छोन || इति पंचकल्याणक भाषा पूजा सम्पूर्णम् । ९०१. पंचकल्याणक पूजा 1 T विश्वाशमय विश्वं चिदादददर्शय । भुवनt भोजभास्वत त जिनन्तोष्टुवीम्यह ॥१॥ गच्छे सारस्वतेयो भवददमयशा 1 कृंतमिदमपर पूज्यनतेनमव्यम् ॥ देखें क्र० ८६७१ 609 इति श्री पंचकल्याणकपूजन समाप्तम् । -- १७४४ का० ० ११ मनीवार । ९०२. पंचकल्याणक पाठ २६६ सवत् १८७६ अनेकतर्क संकर्ष हर्षातितचुधोत्तमा, ॥ स्व नीचवयस्फूर्ति जीवात्श्री प्रतिवरधनम् ॥१३॥

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