Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara
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२७१ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhratisha & Hindi Manuscripts
( Puja-Parha-Vidhana)
Closing t
अनन्त व्रत के मादक करन के कारने वाधे अनत वनायसो नोके धारने स्वर्णरजत पटसूत्र भर्दव नवाई जी
पुजिभक्ति वहुत ठानि पुण्य उपजाय जी। Colophon. चतुर्दश पदार्थ चितवन की व्यौरा जीव समास १४ अजीव १४ गुणस्थान १४ मार्गाणा १४ । भूत । १५ ।
इति अनन्तव्रत विधि सम्पूर्णम् ।
Opening:
Closing :
८०५. अनन्तव्रतोद्यापन पूजा
श्री सर्वश नमस्कृत्य सिद्ध साधू स्त्रिधा पुन. । अनतव्रतमुख्यस्य पूजा कुर्वे यथाक्रमम् ।।१।। ताय॑श्योगुणचन्द्रसूरिरभवच्चारित्रचेतो हर, स्तेनेद वरपूजन जिनवरानतस्य युक्त्यारचि । येत्रज्ञथानविकारिणो यतिवरास्तः सोध्यमेतदवुधम्, गधादारविचद्रमक्षयतर सघस्य मागल्यकृत् ।।५।।
इत्याचार्य श्री गुणचन्द्रविरचिता श्री अनतनाथ पूजन व्रतपूजा उद्यापन सहिता समाप्ता ।।
ली० वा० गगाष्टकसपु - ?॥ देखें-(१) दि० जि० अ० र०, पृ. १६०।
(२) जि० २० को०, पृ०७। (३) आ० सू०, पृ० १६६ । (४) रा० सू० III, पृ० २०५। (५) जै० म०प्र० स० I, पृ० ३४ ।
Colophon:
८०६. अंकुर रोपणविधि एव' वास्तुपूजा
Opening:
Closing:
अथ जवारा विधिलिख्यते । जवारा किइदिन दातारपरि देव गुरु शास्त्र पूजा ' ।
कोट प्रवेशादपि वास्तुदेवः, -
चैत्यालय रक्षतु सर्वकालम् ।। इति वास्तु पूजा विधि ।
Colophon:

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