Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara
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Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhratisha & Hindi Manuscripts
(Puja-Patha-Vidhana)
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Colophon:
प्रथम जिन विदक्ष श्रीधृताद्य जिनेशम् ।। दशधर्म प्रजा पूजा सुमतिसागरोदितम् । स्वर्गमोक्षप्रदा लोके, विश्वजीवहितप्रदाम् ।। इति दसलाक्षणोद्यापन समाप्तम् । देखे--(१) दि जि. अ. र., पृ. १२६ ।
(२) जि. र को., पृ. १६८ । (३) रा० सू० II, पृ० ६०॥ (४) रा० सू० III, पृ. ५४ (५) रा. सू० IV, पृ. ७६५ । (६) भ० स०, पृ० १६३, २००। (७) जै० म०प्र० स० I, पृ० ८७। '
८३१/१. दशलक्षण उद्यापन
Opening : Closing | Colophone
देखें, ऋ० ८३० । देखे, ऋ० ८३० ।
इति भोदशलक्षणोद्यापनपाठ सम्पूर्णम् । ८३१।२. दश लाक्षणीक व्रतोद्यापन ।
Opening :
Closing • Colophon 1
देखें, ऋ० ८३०। ।
उपवासपरोजातो ..' • 'विश्वजीवहितप्रदम् ।
इति श्री. दसलाक्षणी उद्यापन, जी सपूर्ण जेष्ठ कृष्ण ११ एकादश्या भोमवार १ वजे दोपहर को सवत् १९५५ आरामपुर निजगह मे बाबू हरीदास पूज्यदादा वृवावन जी के पोते वो पुज वाबू अजितदास के पुत्र ने लिखा।
८३२. दसलक्षण पूजा
उत्तम छिमा मारदव आर्जव भाव है, सत्य शौच सजम तप त्याग उपाव हैं। .
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