Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 483
________________ २८३ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhratasha & Hindi Manuscripts ( Puja-Patha-Vidhana) Closing | Colophon: पूर्वरत्नत्रया त्रिगुणवरयुता धर्मपंचद्विकेन तहत्यिधाष्टक यद्वधिकगुणयुत पूजयेद्भक्तिनम्रः ॥१॥ ॐ ह्री श्री वीरनाथाय नमः ॥२४॥ इति धर्मचक्रपूजा विधि समाप्ता। शुभ भवतु । Opening : ८४६. गणधरवलय पूजा जिनान् जितारातिगणान् गरिष्टान, देशावधीन् सर्वपरावधीश्च । सत्कोष्ठवीजादिपदानुसारीन्, स्तुवेमनेसानपि सद्गुणादौ ॥१॥ वरिगणिदसमर तह फिट्टइवाहि असेसलऊ । व पावय पासई होइ लगि महामुण सविसदजणण ।। इति। Closing | Clophon Opening ८४७, गणधरवलय पूजा प्रणम्य शिरसाहत पवित्रिस्तीर्थवारिभिः । गणीन्द्रवलयस्याने पूर्णकुंभ न्यासाम्यहम् ।। " संपूजकाना इत्यादि शातिधारा । इति श्री गणधरबलम पूजा समाप्तः Closing | Colophon : Opening : १४८. ग्रहशान्तिपूजा जन्मलगन गोचर समै, रवि सुत पीडा देई । तव मुनिसुव्रत पूजये, पातक नास करेय ।। सगुन अधिकारी दुख हरभारी रोमादिक हरनस् । भूगु सुत दष जाई पाप मिटा (ई) पुष्पदत पूजत चरनम् ।। इति शुक्रारिष्ट निवारक पुष्पदत पूजा सम्पूर्णम् । Closing : Colophon: Opening ६४६. होमविधान श्री शांनिनाथ ममरासुर मर्यनाथः, भाष्वति रीढमणि दीधित पादपह्वम ।

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