Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

View full book text
Previous | Next

Page 481
________________ २८१ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts (Puja Patha-Vidhāna ) f Opening Closing Golophon : Opening : Closing Colophon Opening: Closing Colophon : Opening : Closing. Colophon ८३७. देवपूजा सुरपति पूजा रचो ॥ की सकत समान विन सकते सरधा धरो । स्वागत मरधावान अजर-अमर सुख भोगवे ॥ इति । dab ६३६. देवपूजा brood ॐ अपवित्र पवित्रो वा सुस्थितो दुस्थितोपि वा । ध्यायेत् पचनमस्कारं सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ त्रीसंधान विवित्रकाव्यरचनामुच्चारयतो नरा " पुन्याढ्या मुनिराजको तिसहिता भूतातपो भूषणा. - भण्या कला विवोधरूचिर सिद्धि लभते पराम्।। । $ इतिदेवपूजा समाप्तम् । विशेष - नेमिनाथ का वारहमासा भी इसके बाद मे दिया हुआ है । ८३६. देवपूजा DOO जय जय जय नमोस्तु ३ सव्वसरहूण ॥१॥ हरीवशममुद्भूतो गरिष्टनेमिजिनेश्वर । ध्वन्तोपस दैत्यारिपामर्व नागेन्द्रपूजित ॥४॥ अनुपलब्ध ... ४०. देवपूजन देखे – ०८१६ 1 दुःख को छै हो । कर्म का छय होहु । भली गतिविषै गमन होहु । 1 इति शातिधास सम्पूर्णम् ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531