Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

View full book text
Previous | Next

Page 492
________________ 4 1 श्री जैन सिद्धान्त भवन प्रन्यावली २१२ Shri Devakumar Jain Oriental Library Jain, Siddhant Bhavan, Arrah 21 " १। Closing I 2-0 Colophoni Opening! 1 Closing 7 Colophoni 1 ‚Ï Opening! Closing : 5 your 7 Opening Colophon: 1 । इति श्री महावीर जयमाल समाप्तम् । अखिल सुरामती पचकल्याणकर्त्ता, त्रिदशचरणद्यर्ता दुःखसंदोहहर्त्ता । भवजलनिधितर्त्ता सिद्धिकाताविवर्त्ता, भवतु जगतिवीरो मेनीश मगलाय ॥१॥ ८७६. मंदिरप्रतिष्ठा विधान 11 श्री मद्वीर जिनेशानं प्रणिपत्य महोदयम् । अह॑न्न॑व्य॑विधामस्य शुद्ध वक्ष्ये य॒थाग॒मम् । तिर्यग्प्रचारादशनिप्रयाता, द्वीज प्ररोहा 'चमखात्तयातात् कोटप्रवेशादपि वास्तुदेवा., चैत्यालय रक्षतु सर्वकालम् || अथाग्रे शांतिधारा कुर्यात् । नही है। " ," -- ८७७. मृत्यृजमयाराधना विधान चंद्रपुराधिचंद्र चंद्राकं चद्रकातसंकाशम् । चद्रप्रभजिनमचे कुळदेंदुस्वारकी र्तिकाताशातम् || 1 अंत्यत भक्यानत देवचद्रसूर्याभिवद्याग्रजिनेन्द्र भक्ता - ब्रह्मणिकाद्या उंररीकृतार्थ्यां सर्वोवमृत्यु' विनिवरियतेम् । अणिमादिगुणैश्यर्थशालिभ्येत्यष्टमांतर । याजकानां सुशात्यर्थं सुप्रसन्ना भवंतु ते ॥ नही है। 23 ८७८ मूल संघकाष्ठा संधी श्रीमनु मन्दिरं मस्तके 960 1105 D 60 """ na clo जैनाभिषेकोत्सवे ॥ """" fotubex ·

Loading...

Page Navigation
1 ... 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531