Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara
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Catalorints Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Adabhramsha & Hindi Manuscripts
..... ... ....९९१ (Paja.Patha-Vidhana)
Closing :
पुत्राश्च मित्राणि कलत्रवधून, सच्चद्रकीतिरमणी सरूपाः ।
श्री क्षेत्रपालोग्रतरप्रभावा दायांतु ते सर्व समी हितानि ।। colophon: इति क्षेत्रपालपूजा समाप्तम् । शुभ सवत् १९३६ पौषशुक्ल
पौषचंद्रवासरे लि० अनसुखेन । शुभ भूयात् । । विशेष-सबसे अन्त मे एक स्तुति भी लिखी गई है।
८७३. लघु सामायिक पाठ Opening • पडिकमामि भतेइरियाए विराहणाए अण्णगुत्ते अगमणे
निगमणे चक्कमणे पाणगमणे ... ... . । Closing : .. गुरव यातु वो नित्य, ज्ञानदर्शननायका ।
पारित्रार्णव भीराः मोक्षमार्गोपदेशकाः ।। Colophon! इति सामामिक स्तवन समाप्तम् ।
८७४. महाभिषेक विधान
Opening I . . .. भीमद्भिनिराजजन्मसमये स्नानक्रमप्रक्रिया,
मेरो निपषः पयोविनियः पूणे. सुवर्णात्मक. । .. काम याममितत्रिपाषरशतः शक्रादयश्चक्रिरे,
स्वामत्रार्यजनानुरागजननी जातोत्सवप्रस्तुचे ।। Closing पायोभिपातयामस्तदनुतजगता शतिये शातिधाराम् । Colophon - एव चाह क्रमेणपरिसमापित महाभिषवण कल्याणमहामह
विधानः समाप्तः।
८७५, महावीर जयमाल
. :
Opening I
,
अमृतसरसिहमो सुकृतांतहसो, भयकदनुजहसो मुक्तिमागंणहंस । करणविजयहसो भावदस्यहसो, जयतु वीसुवासे भग्येलेखासुखाय ॥२॥

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