Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara
View full book text
________________
२७३ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramgha & Hindi Manuscripts
( Puja-Patha-Vidhāna)
मागच्य य. तपश्रेचण चरता ज्ञान च निर्वाणकैः। 'मागल्य य. सदा भवति भवता श्री नाभिराजो गहे,
मागल्य यत्सदा भवतु भवता श्री आदिनाः॥ इति जन्मपूजा सपूर्णम् । स० १९६६ का।
Colophon
८११. वारसीचौबीसी पूजा वा उद्यापन Opening
बारसि चुत्रीसातुवेरू। चतुर्दश जीवसमासा। Closing कोतिस्फूर्ति -- सेवाफलात् ॥ Colophon: इति श्री भट्टारक श्री शुभचन्द्र विरचित बारसि चुत्रीसा
न उद्यापन मत्रपाठ सम्पूर्णम् । श्री सूरतिबिंदिरे लिखापितम्। '
... - लालचन्द गुणवत सपरैमनकर वाचिये भल भाव भगवत । स० १९४६ ।
८१२. भावना बत्तीसी
Opening .
अतुलसुखनिधान सर्वकल्याणवीज, जननजलधिपोत भव्यसत्वंकपात्रम् । दुरिततरूकुट्ठार पुण्यतीर्थप्रधान, पिवतु जितविपक्ष दर्शनाक्ष सुधावू ॥१॥ इति द्वात्रिंशतावृत्तः परमात्मातमोक्षये।
योनन्यगतचेतस्कयात्पसो परमव्यम् ॥३३॥ इति भावना वतीसी समाप्तम् ।
Closing
Colopont
८१३. बीस भगवान पूजा
Opening
Closing!
श्रीमज्जबूधातकी - - नित्य यजामि ।। तुमको पूजा चन्दना कर धन्य नर जोय ।
सरदा हिरदै जोधर सो भी धरमी होय ॥ इति श्री वीसविहरमानपूजा जी समाप्तम् ।
।
Colopong

Page Navigation
1 ... 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531