Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

View full book text
Previous | Next

Page 469
________________ २६६ Coralogue of Snnskrit, Prokril. Apabhramghn & Hindi Manuscripta (Stotra) ७९६. बिननी Oponing मी श्री जिनराय गनयन का गेजी। गम माना मुम तान गुमही परमधनी जी। Closing : मशनरी विभाग पोजिण गति रची जी। पर मुनिनानि गंगु को जी। Colophon : निविनती माग। सयन १५२ वर्षे मागीमनियार। ७६७. वोन राग स्तोत्र Opening : म्यांमामो ..... नामस्यायनो॥॥ Cloning? मो जय गणगो विपनयोगोमणाणा ।। विरोप-गामा पत्र भी बनाया गया है। से --Catg of Sht & pht. Ms., P.693 Opening ' ७६८. वृतन गहननाम प्रमोम्यागभोगेा निपिन्नोभीरमा । एप विजापयामि यो पप फरणाम् ।। निमारियोमा । Closing : Opening ७६६ यमकाप्टक स्तोत्र विधाग्यशान्त्य पद पद पदम्, प्रत्यग्रमन्यत्नपर पर परम् । यंतगकारवुध बुध बुधम् , फरस्तुये विश्वहित हित हितम् ॥१॥ भट्टाररू. मृत स्तोत्र य. पठेघमकाप्टकम् । सवंदा म मयन्यो भारतीमुखदर्पण ॥१०॥ इति भट्टारक श्री अमरकीति कृत यमकाप्टकस्तोत्र समाप्तम् । ८०० योगभक्ति थोस्सामि गणधराण अणयाराण गुणेहिं तच्चेहि । अलि मउलिय इच्छो अभिवदतरे सविभषेण ||१|| Colophon . Opening :

Loading...

Page Navigation
1 ... 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531