Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 468
________________ २६८ थी जन,सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Irrbrary, Jain Siddhant Bhavan, Arrab Colophon | इति श्री धनजय कृत विषापहार स्तोत्र सपूर्णम् । ७९२. विषापहार स्तोत्र Opening : देखे, क्र0 ७८५ । Closing : स्तोत्र जु विपापहार, भूलचूक कछ वाक्य ही। ज्ञाता लेहु सँवार, अखैराज अरजत हम ॥ Colophon: इति श्री विषापहार स्तोत्रमूल कर्ता श्री धनञ्जय तस्य उपरि भाषा वचनिका करी शाह अखैराज श्रीमालन अपनी बुद्धिअनुसारे । ७९३. विषापहार स्तोत्र Opening : देखें, ऋ० ७८५ । Closing : देखे, ऋ0 ७५५ ।। Colophon : इति विषापहार स्तवन, समाप्त । सवत् १६७२ वर्षे जेष्ट (ज्येष्ठ) वदी ७ शुभदिने भट्टारक श्री हेमचद तत्पट्ट' भ० श्री पदमनद तत्प?' भट्टारक जसकीर्ति तत्पट्ट भ० श्री गुणचद्र तत्पढेंभट्टारक श्री सकलचद्र तशिष्य पडित मानसिंघ (ह)लिखापित आत्मपठनार्थम् । लिखित कायस्थ मायुरमेवरिया दयालदास तत्पुत्र सुदर्शनेन शुभ भवतु लेखक पाठकयो । , ७६४. विषापहार स्तोत्र मूल Opening : देखें, * ०.७८५ । Closing : देखें, क० ७८५। Colophon: इति विषापहारस्तोत्र सम्पूर्णम् । Opening : ७६५. विनती संग्रह मत्र जप्यो भवसागर तिरियो, पाई मुकति पियारी। ज्याका० ।। देवा ब्रह्ममुकुत्या पद पावं, तो दरसण ग्यान.पटाव होने हैं। वाणी बोल केवल ग्यानी 150 इति सम्पूर्णम् । Closing ! Colophon :

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