Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 460
________________ भी जन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrib Closing : श्री शान्तिनाथस्य जिनेश्वरस्य प्रभातिक स्तोत्रमिद पविः । त्रम् । पुमानधीते भवती हयोपि श्री भूषणस्याद्वरचंद्र ॥६॥ इति श्री शान्तिनाथप्रभातिकस्तवन समाप्तम् । Colophon: ७६३. शान्तिनाथ स्तवन Opening : closing : ॐ शातिशांति · शांतये स्तौमि ॥१॥ येश्चन पठति सवा शृणोति भावयति वा यथायोग ! शिवशातिपदं जयात् सूरिश्रीमानदेवस्य ॥१७॥ इतिशांतिस्रावनं समाप्तम् । देखें-वि. जि, प्र. र.,पृ. १५० । colophon: ७६४. शान्तिनाथ स्तवन Cpering . closings अयशाच्च गृहस्यास्य मध्ये परमसुन्दरम् ।। भवन शांतिनाथस्य युक्तविस्तारतुगतम् ।। कृत्वा स्तुति प्रणाम च भूयोभूयः सुचेतस. 1 यथासुख सभासीना प्रश्रणे जिनकेश्मन ।। नहीं है। Colophen : ७६५: सरस्वती कल्प Openings जगदीश जिन देवमभिवद्यामि नन्दन । क्ष्ये सरस्वतीकस्प समासादल्पमेधसाम्॥ Closing : कृतिना मल्लिक्षणेन श्रीषणस्य सूनुना। . . रचितो भारतीकल्प. शिष्टलोकलनोहर ।। .: सूर्यचन्द्रमसा यावत् मेदिनीभूधरार्णवः । - तावत्सरस्वतीकल्फ. स्थैयाच्चेतसि धीमताम् ।। Colophon .:.:, - इत्युभयभाषाककिरोखर श्री मल्लिषेणसूरिविर वितो भारतीकल्प समाप्तोऽभूत् ।

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