Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

View full book text
Previous | Next

Page 454
________________ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली . Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah Closing : जगदेकशरण भगवन्नसमश्रीपद्मनदितगुणोध कि। वहुना कुरु करूणामत्रजने शरणमापन्ने ॥८॥ इति प्रार्थनास्तोत्र सम्पूर्णम् । nolophon : ७४३. रक्त पद्मावती कल्प Opening I ... सन्निधापयेत् विसर्जना विसर्जयेत् । गधादि प्रहणानतर पटमचल कृत्वा ततो जाप कुर्यात् " - । Closing! -- भवतोऽस्माभिर्दत्तो मत्रोऽय परपरायात. साक्षिणो रव्यादिदेववता। Colophon : इति रक्तपद्मावती कल्प समाप्तम् । सवत् १७३८ वर्ष कार्तिकसुदी १३ रवी श्री औरगाबाद नगरे श्री षरतर श्री वेगमुगदै भट्टारक श्री जिनसमुद्रसूरिविजयराज्ये तत् शिष्यसौभाग्यसमुद्रेण एषा प्रतिलिपि कृताः। ७४४. ऋषभस्तवन Opening: Closing : Colophon: सिद्धाचल श्रीललनाललाम, महीमहीयो महिमाभिराम" असारससार पथोपराम नवामि नाभेय जिन निकामम् ।। एव श्रतो यमकभेद परंपराभि , राभिर्मयाविमल शैलपति पराभिः। आदीश्वरो दिशतु मै कुशल विलासम्, वाचा विचक्षण चकोरसुधाशु भारम् ।। ___इति श्री शत्रु जयालकरण श्री ऋषमस्तवनमेकादशयमकभेदैः समर्थितम् श्री जिनकुशलसूरिभिः सम्पूर्णम । ७४५. ऋषिमंडलस्तोत्र प्रणम्य श्रीजिनाधीशं लन्धिसामस्तसयुत ।। ऋषिमडलयत्रस्य वक्षे पूज्यादिमल्यमम् ॥१॥ नि शेपामरशेषरचितपद उरोल्लसत्सख । वातप्रोतकाति सहतिहतप्रव्यक्त भक्त यासन Opening: Closing

Loading...

Page Navigation
1 ... 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531