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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्यावली Shri Devakumar Jain Oriental Library Jain, Siddhant Bhavan, Arrab
Closing I यह चौवालीसमा काव्य मत्र जप पढे ते ममुद्र जिहाज न
एवै पारलगै श्रापदा मिट काव्य उद्धत ।। Colophon: अपूर्ण ।
६२६. भक्तामर टीका
Opening : Closing
देखें, ऋ० ६०७ ।
भक्तामर टीका सदा, पढ़ सुन जो कोई । हेमराज शिवशुख लहै, तरामनव छित होई ।। इति श्री भक्तामरटीका समाप्ता ।।
देखें-टि. जि० प्र० र०, पृ० १२३ ।
Colophon:
६३०. भक्तामर टीका
Opening :
Closing
श्री वर्धमानं प्रणिपत्य मूर्ना दोव्य येत ह्यविरुद्धवाचम् । वक्ष्ये फल तत् वृषभस्तवस्य सूरीश्वरैर्यत् कथित क्रमेण ।। वर्णितः कूमार्मसीनाम्न वचनात्मयकारि च ॥ भक्तामरस्थ सद्वृतिः रायमल्लेन वर्णिता ।। त्रिभिः कुलकम् । इति श्री ब्रह्म श्री सायमल्लविरचित भक्तामरस्तोत्रवृतिः समाप्ता.॥
Colophon 1
६३१. भक्तामर स्तोत्र टीका
Opening | देखें, क्र0 ६०७ ।
Closing | देखें, ऋ0 ६२६ । Colophon __ इति श्री भक्तामर जी का टीका उक्त वातिक मया बाला
हेमराजकृत सपूर्णम् । सवत् १६0 माघसुदी १० वुधवार लिo जमनादास दिल्ली मध्ये धर्मपुरा आरहमल का मंदिर में।