Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara
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Catalogue of Sanskrit, Praknt, Apabhramsha & Hindi Manuscripts
_Stotra)
६४० भक्तिसग्रह टीका
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सिद्धानुद्भू तकर्म्मप्रकृतिसमुदयान् साधितात्मस्वभावान् । वदे सिद्धि प्रसिद्ध तदनुपम गुणप्रग्रहाकृति तुष्ट' ।। दुखकरकउ कम्मरकउ वोहिलाओ सुगइगमण समहिमरण जिणगुण सपति होउ मष्टम् ।
इति नदीश्वर भक्ति: । मूल श्लोक ४७० सख्या । इति दशभक्ति पाठ की अक्षरार्थ भाषा बालवबोधार्थ पडित
शिवचंद्र कृत समाप्तम् । सवत् १९४८ मार्ग० वदी ६ शनौ शुभ
भूयात् ।
६४१. भाषापद संग्रह
२२७
दरसन भयो आज शिखिर जी के । बीस कोस पर गिरवर दीखे,
भाजे भरम सकल जी के ॥
कुंदन ऐसी अनर्थ माया, विधिना जगमे विस्तारी । अजठारह नाते हुए, जहा एक नही जारी । इति सपूर्णम् ।
६४२. भूपालचतुर्विंशतिकामूल
श्री लीलायतन महीकुलगृह कीर्तिप्रमोदास्पदम्, वाग्देवी रतिकेतन जयरमा क्रीडानिधान महत् । स स्यान्सर्व महोत्सर्वकभयन य: प्रार्थतार्थप्रद, प्रात पश्यति कल्पपादपद्म छाया जिनात्रिद्वयम् ॥ दृष्टस्त्व जिनराजचद्रविडूपेन्द्र नेत्रोत्पले, स्नात्तत्वन्तुति चद्रिकांभसि भवद्विद्विच्चकारोत्सवे । नीतश्चाघ निदाद्यज. त्झमभर शांतिमया गम्यते, देवत्वद्गतचेतसेव भवतो भूयात्पुनर्दर्शनम् ॥ इति भूपाल चौबीसी स्तोत्र सम्पूर्णम् । देखें - ( १ ) दि० जि० ग्र० २०, पृ० १२५ |

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