Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara
View full book text
________________
२४०
श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jarn Siddhant Bhavan, Arcob
७२०. पद्मावती वृहत्कल्प
Opening : Closing :
देखें ऋ० ७१८ ।
जगभक्त्यासुकृत्ये कौ भक्त्या मा कुरुते सदा । वाञ्छित फलमाप्नोति तस्य पभावती स्वय ॥ इति पनावत्या वृहतकल्प समाप्तम । ७२१. पद्मामाता स्तुति
Colophon:
Opening :
Closing :
जिनसासनी हसामनी पद्मासनी माता। भुज चार ते कल चार दे पद्मावती माता । जिनधर्म से डिगने का कहु आपरे कारन । तो लीजियो उबार मुझे भक्त उद्धारन ।। निज कर्म के सयोग से जिस यौन म जाओ। तहा हो जियो सम्यक्त जो मिवघाम को पावो॥ जिनशासनी इति पूर्ण। ७२२. पद्मावती स्तोत्र
Colophon:
Oponings
श्री पार्श्वनायजिननायकरल बूटापाशाकुशोगयफनाकिन
दोश्चतु ॥ पद्मावत्तीविनयना त्रिफलावतमा पद्यमावती जयति शासन
पुण्यलक्ष्मी.॥
Closing
पठित भणित गुणितं जयविजयरमानिवधन परमम् मर्वाधिव्याघिहर निजगति पत्रमावतीस्तोत्रम् ॥ माह वान नंब जानामि नंब जानामि पूजनम्
विसर्जन न जानामि क्षमन परमेश्वरी ॥२८॥ विशेष- आरा मे पानीमादर नदायो भार, ता गुलान पाओ. मारी ॥
-(१) जि. र. 10, 2० २३५ ।
(2) Catg, of Skt & pkt. Ms.66s. ७२३. पद्मावती स्तोत्र
Opening •
दे
०
११८ ।

Page Navigation
1 ... 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531