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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jarn Siddhant Bhavan, Arcob
७२०. पद्मावती वृहत्कल्प
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देखें ऋ० ७१८ ।
जगभक्त्यासुकृत्ये कौ भक्त्या मा कुरुते सदा । वाञ्छित फलमाप्नोति तस्य पभावती स्वय ॥ इति पनावत्या वृहतकल्प समाप्तम । ७२१. पद्मामाता स्तुति
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जिनसासनी हसामनी पद्मासनी माता। भुज चार ते कल चार दे पद्मावती माता । जिनधर्म से डिगने का कहु आपरे कारन । तो लीजियो उबार मुझे भक्त उद्धारन ।। निज कर्म के सयोग से जिस यौन म जाओ। तहा हो जियो सम्यक्त जो मिवघाम को पावो॥ जिनशासनी इति पूर्ण। ७२२. पद्मावती स्तोत्र
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श्री पार्श्वनायजिननायकरल बूटापाशाकुशोगयफनाकिन
दोश्चतु ॥ पद्मावत्तीविनयना त्रिफलावतमा पद्यमावती जयति शासन
पुण्यलक्ष्मी.॥
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पठित भणित गुणितं जयविजयरमानिवधन परमम् मर्वाधिव्याघिहर निजगति पत्रमावतीस्तोत्रम् ॥ माह वान नंब जानामि नंब जानामि पूजनम्
विसर्जन न जानामि क्षमन परमेश्वरी ॥२८॥ विशेष- आरा मे पानीमादर नदायो भार, ता गुलान पाओ. मारी ॥
-(१) जि. र. 10, 2० २३५ ।
(2) Catg, of Skt & pkt. Ms.66s. ७२३. पद्मावती स्तोत्र
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