Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika Author(s): Kailashchandra Shastri Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan View full book textPage 8
________________ प्राक्कथन काशीपुरी जैनधर्म का प्राचीन तीर्थ स्थान है। वहीं श्री स्याद्वाद महाविद्यालय नामकी अतिविशिष्ट विद्या संस्था गंगा तट पर स्थित है। पूज्यपाद श्री वर्णी जी ने अपने तपःपूत आदर्श के अनुसार सन् १६०५ में इसकी स्थापना की थी। उसके वर्तमान विद्याध्यक्ष श्री कैलाशचन्द्र जी शास्त्री ने 'जैन साहित्य के इतिहास की पूर्व पीठिका' नामक अन्वेषण युक्त ग्रन्थ लिखा है जिसका मैं स्वागत करता हूँ। लगभग ५ वर्ष पूर्व मेरे मन में जैन साहित्य के बृहत् इतिहास निर्माण का एक विचार उत्पन्न हुआ था। काशी के जैन विद्वानों में उसके प्रति उत्साह उत्पन्न हुअा। मुझे इस बात की अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों मान्यताओं के अनुयायी विद्वानों ने उसका स्वागत किया । तदनुसार पार्श्वनाथ आश्रम की ओर से श्री दलसुख भाई मालवणिया की देख-रेख में जैन साहित्य का इतिहास पांच भागों में लिखा जाने लगा। उसका पहला भाग तैयार है पर अभी तक वह प्रकाशित होकर सामने नहीं पाया । दूसरी ओर स्व० श्री महेन्द्र कुमार जी जैन ने श्री वर्णी जैन ग्रन्थमाला की ओर से अपने सहयोगियों के साथ इस साहित्य का इतिहास दिगम्बर सामग्री के आधार पर विरचित करने का संकल्प किया। श्री महेन्द्र कुमार अत्यन्त प्रतिभाशाली विद्वान थे। वे काशी विश्व विद्यालय में बौद्ध दर्शन के प्राध्यापक थे। उनकी प्रेरणा से यह कार्य समय पाकर संसिद्ध होने को था, किन्तु ईश्वर की इच्छा कि वे अकाल में ही स्वर्गवासी हो गये। मुझे इस बात का बहुत हर्ष है कि उनके घनिष्ठ सहयोगी और मित्र श्री पं० कैलाशचन्द्र जी ने उस पवित्र संकल्प को न केवल अविस्मृत ही रखा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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