Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika Author(s): Kailashchandra Shastri Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan View full book textPage 6
________________ थी वह विभूति अब हमारे बीच में नहीं है। यह एक बहुत बड़ी क्षति है, जिसका मैं ही क्या समग्र जैन समाज अनुभव करता है । फिर भी यह हमारा भाग्य है कि उनका पुण्य आशीर्वाद हमारे साथ है । मुझे भरोसा है कि उनके पाशीर्वाद के फलस्वरूप ग्रन्थमाला समिति ने जो यह कार्य अपने हाथ में लिया है वह अवश्य ही पूरा होगा। श्री जैन शिक्षा संस्था। निवेदक कटनी (जबलपुर) जगन्मोहनलाल शास्त्री २५-३-६३ (उपाध्यक्ष श्री ग० वर्णी जैन ग्र०) श्री गणेशप्रसाद वर्णी जैन ग्रंथ माला को श्री जैन साहित्य के इतिहास निमित्त जो आय हुई __ और इस मदमें अभी तक जो व्यय हुआ उसका विवरण आय १५००) श्रीमान् सिंघई श्रीनन्दनलाल राजकुमार जी बीना इटावा १००१) स्व० श्रीमान् सेठ लालचन्द जी दमोह ६५१) दि० जैन समाज विदिशा ५०१) श्रीमान् श्रीमन्त सेठ लक्ष्मीचन्द जी राजेन्द्रकुमारजी विदिशा ५०१) श्रीमान् अवीरचन्द रूपचन्द जी कुमार स्टोर विदिशा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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