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भूगोल-खगोल विषयक साहित्य : ३३ कतिपय प्रकरणोंको देखनेसे ऐसा प्रतीत होता है कि ग्रन्थकारमें संग्रह वृत्ति थी। उन्हें जहाँ जो कुछ संग्राह्य जान पड़ा उसका उन्होंने संग्रह कर लिया। उदाहरणके लिए प्रथम अधिकारके आदिमें लोक सामान्यका वर्णन आरम्भ करते हुए पल्यका प्रमाण बतलानेके लिए परमाणुका निरूपण ७ गाथाओंके द्वारा किया है । वे सातों गाथाएं ग्रन्थातरोंसे संगृहीत की गई हैं । गाथाएँ इस प्रकार हैं
खंधं सयलसमत्थं तस्स य अद्धभणंति देसो त्ति । अद्धद्धं च पदेसो अविभागी' होदि परमाणू ॥१५॥ सत्थेण सुतिक्खेण छेत्तु भेत्तुं च जं किरस्सक्कं । जलयणलादिहिं णासं ण एदि सो होदि परमाण ॥९६॥ एक्करसवण्णगंधं दो पासा सद्दकारणमसदं । खंदंतरिदं दव्वं तं परमाणु भणंति बुधा-॥९७॥ अंतादि मज्झहीणं अपदेसं इंदिएहि ण हु गेझं । जं दव्वं अविभत्तं तं परमाणु कहंति जिणा ॥९८॥ पूरंति गलति जदो पूरणगलणोहि पोग्गला तेण । परमाणुच्चिय जादा इदि दिटुं दिट्टिवादम्हि ॥९९।। वण्णरसगंधफासे पूरणगलणाइ सव्वकालम्हि । खंदं पिव कुणमाणा परमाणु पुग्गला तम्हा ॥१०॥ आदेसमुत्तमुत्तो धातुचउक्कस्स कारणं जो दु ।
सो णेओ परमाणु परिणाम गुणो य खंदस्स ॥१०१॥ इनमेंसे गाथा ९५, ९७ तथा १०१ पञ्चास्तिकायकी क्रमसे गाथा नं० ७५, ८१ और ७८वीं गाथा हैं। इन तीनोंके केवल अन्तिम चरणमें पाठभेद पाया जाता है। पञ्चास्तिकायमें उनकी स्थिति बिल्कुल स्वाभाविक और सयुक्तिक है। जबकि ति०प०में वे संगृहीत दशामें वर्तमान हैं। इसी तरह गाथा ९६का पूर्षि अनुयोगद्वारकी गाथासे बिल्कुल मिलता हुआ है । यथा
'सत्येण सुतिक्खेणवि छित्तुं भेत्तु च जंकिर न सक्का ।
तं परमाणु सिद्धा वयंति आई पमाणाणं ॥१००॥' गाथा ९८ नियमसारकी २६वीं गाथा है उसमें वह इस प्रकार है
अत्तादि अत्त मज्भं अत्ततं णेव इंदिए गेभं । जं दव्वं अविभागी तं परमाणु विजाणीहि ॥२६॥
१. 'परमाणु चेव अविभागी ॥७५॥'-पञ्चास्ति । २. 'परमाणुतं वियाणेहि' ॥८१॥-पञ्चा० । ३. 'परिणाम गुणो सयमसद्दों' ॥७८॥ पञ्चा० ।