Book Title: Jain Sahitya ka Itihas 02
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 355
________________ तत्त्वार्थविषयक टीका-साहित्य : ३४३ दुविहं पि मोक्खहे शाणे पाउणदि जं मुणी णियमा । तम्हा पयत्तचित्ता जूयं साणं समन्भसह ।।४७॥ अतः द्रव्य संग्रह जयसेनके द्वारा निदिष्ट तत्त्वानुशासनसे भी पहले रची गई है । तत्त्वानुशासनका समय अभी तक निश्चित नहीं हो सका है। फिर भी इतना निश्चित प्रतीत होता है कि वह अमृतचन्द्रके और संभवतया ,देवसेनके पश्चात् रचा गया है। द्रव्यसंग्रहके अनुसरणसे द्रव्य संग्रह और टीकाकार जयसेनके मध्यमें उसका रचा जाना संभव है । अतः टीकाकार ब्रह्मदेवके द्वारा निर्दिष्ट राजा भोजके समयमें द्रव्य संग्रहको रचना होना संभव प्रतीत होता है। ४. द्रव्यसंग्रहकी एक वृत्ति प्रभाचन्द्रकृत उपलब्ध है। यह प्रभाचन्द्र वही प्रतीत होते हैं जिन्होंने न्याय कुमुदचन्द्र तथा प्रमेयकमल मार्तण्ड आदि टीकाग्रन्थोंकी रचना की थी। प्रशस्तियोंके अनुसार उन्होंने प्रमेयकमल मार्तण्डकी रचना भोजराजाके राज्यकालमें और न्यायकुमुदचन्द्र, गद्यकथाकोश, पुष्पदन्तके महापुराण पर टिप्पण तथा समाधितंत्र टीकाकी रचना जयसिंह देवके राज्यमें की थी। ____ अतः भोज राजाके राज्यकालमें द्रव्य संग्रह रची जा चुकी थी यह निश्चित है । ब्रह्मदेवके अनुसार भोज राजाके राज्यकालमें ही द्रव्यसंग्रहकी रचना हुई है। अब देखना यह है कि राजा भोजके समयमें कोई नेमिचन्द्र सैद्धान्ती नामके विद्वान् हुए हैं या नहीं ? मुख्तार साहबने लिखा है कि-'एक आचार्य नेमिचन्द्र ईसाकी ग्यारहवीं शताब्दीमें हुए हैं जो वसुनन्दि सैद्धान्तिकके गुरू थे और जिन्हें वसुनन्दि श्रावकाचारमें जिनागमरूपी समुद्रकी बेला तरंगोसे धूयमान ओर सम्पूर्ण जगतमें विख्यात लिखा है। आश्चर्य तथा असंभव नहीं जो ये ही नेमिचन्द्र द्रव्यसंग्रहके कर्ता हों, परन्तु यह बात अभी निश्चित रूपसे नहीं कही जा सकती, आदि । ( पुरा० ० वा० सू०, प्रस्ता० १० ९४ )। इस सम्बन्धमें उल्लेखनीय बात यह है कि इन नेमिचन्द्रके गुरूका नाम नयनन्दि' है। इन नयनन्दिने अपभ्रंशभाषामें सुदर्शन चरित नामका ग्रन्थ रचा है उसकी अन्तिम प्रशस्तिमें लिखा है कि इस ग्रन्थकी रचना विक्रम सम्बत् ११०० में धारा नरेश भोजदेवके समयमें हुई है। नयनन्दि माणिक्यनन्दिके शिष्य थे। इन्हीं माणिक्यनन्दिके शिष्य प्रभाचन्द्र थे और उन्होंने अपने गुरूके द्वारा रचित परीक्षामुखसूत्रों पर प्रमेयकमल मार्तण्ड नामक ग्रन्थ रचा था। ये ही प्रभाचन्द्र १. देखो, अनेकान्त, वर्ष ८, कि० ८-९ में 'आचार्य माणिक्यनन्दिके समय पर अभिनव प्रकाश' शीर्षक लेख ।

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