Book Title: Jain Sahitya ka Itihas 02
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 356
________________ ३४४ : जेनसाहित्य का इतिहास द्रव्यसंग्रहकी वृत्तिके रचयिता हैं । यदि द्रव्यसंग्रह प्रभाचन्द्रके गुरुभाई नयनन्दिके शिष्य नेमिचन्द्रकी रचना है तो कहना होगा कि नेमिचन्द्रने अपने गुरू नयनन्दिके द्वारा रचित सुदर्शनचरित के समकाल में ही द्रव्यसंग्रहकी रचना कर डाली थी, तभी तो प्रभाचन्द्र उसकी वृत्ति रच सकते हैं। यद्यपि ऐसा होना असंभव नहीं है तथापि अपने शिष्य तुल्य नेमिचन्द्रके द्वारा रचित द्रव्यसंग्रह पर प्रभाचन्द्र के द्वारा वृत्तिका रचा जाना और द्रव्यसंग्रहके रचयिताके लिये महामुनि सैद्धान्तिक जैसे विशेषणोका प्रयोग किया जाना चित्तको लगता नहीं है । और उक्त विप्रतिपत्तियोंके होते हुए भी यही सन्देह होता है कि द्रव्यसंग्रहके रचयिता नेमिचंद्र प्रसिद्ध सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमिचन्द्र ही तो नहीं है। ऐसा न होने पर भी उनके समकालमें द्रव्यसंग्रहका रचा जाना संभव है। प्रभाचन्द्र कृत तत्त्वार्थवृति टिप्पण' विक्रमकी ग्यारहवीं शताब्दीके उत्तरार्धमें प्रभाचन्द्र नामके एक महान् ग्रन्थकार हो गये हैं। इन्होंने माणिक्यनन्दिके परीक्षामुख सूत्रों पर प्रमेयकमलमातण्ड नामक और अकलंकदेवके लघीयस्त्रय पर न्यायकुमुदचन्द्र नामके महान दाशनिक ग्रन्थोंकी रचना की है । इसीसे 'प्रथित तक ग्रन्थकार' के रूपमें उनकी प्रसिद्धि है। उनके गुरुका नाम पद्मनन्दि सैद्धान्तिक था। प्रायः अपनी प्रत्येक रचनाके अन्तमें उन्होंने अपने गुरुका नाम स्मरण किया है। यह धारा नगरीके निवासी थे प्रमेयकमल मार्तण्ड और न्याय कुमुदचन्द' आदि १. अनेकान्तके प्रथम वर्षकी चौथी किरणमें 'पुरानी बातोंकी खोज' के अन्तर्गत पं० जुगुल किशोरजी मुख्तारने इसका सर्वप्रथम परिचय दिया था। हमें इसकी एक प्रति पं० परमानन्दजी दिल्लीके द्वारा अवलोकनार्थ प्राप्त हुई थी जो उन्होंने सहारनपुरके लाला जम्बूप्रसादजीके मन्दिरके भाण्डारकी प्रतिसे की है। अब यह भ० ज्ञानपीठसे सवर्थसिद्धिके साथ प्रकाशित हो गया है। २. इनके सम्बन्धमें विशेष रूपसे जाननेके लिये न्यायकुमुदचन्द्र के दोनों भागों की प्रस्तावना देखना चाहिये । ३. 'शब्दाम्भोरुहभास्करः प्रथिततर्कग्रन्थकारः प्रभाचन्द्राख्यो मुनिराज पण्डित वरः'-श्रव० शिला० नं० ४० (६४)। ४. 'श्रीभोजदेवराज्ये श्रीमद् धारानिवासिना"श्रीमत्प्रभाचन्द्र पण्डितेन"" परीक्षामुखपदमिदं विवृतमिति ।' ५. 'श्री जयसिंह देवराज्ये श्रीमद्धारा निवासिना''श्रीमत्प्रभाचन्द्रपण्डितेन ""न्यायकुमुदचन्द्रो"कृतः ।

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