Book Title: Jain Sahitya ka Itihas 02
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 370
________________ ३५८ : जेनसाहित्य का इतिहास प्रभाचन्द्र विरचित अर्हत्प्रवचन - प्रभाचन्द्र नामके किसी आचार्यके द्वारा रचित एक अन्य सूत्र ग्रन्थ भी है जिसमें उसका नाम अर्हत्प्रवचन दिया है । शायद इन्हींसे विच्छेद करनेके लिये उक्त प्रभाचन्द्रके नाममें बृहत् विशेषण लगाया गया हो । इस अर्हत्प्रवचनमें केवल पाँच अध्याय हैं और उनमें क्रमसे ११ + २० + २० + १५ + १८ = ८४ सूत्र है । इसमें वर्णित विषय भी यद्यपि तत्त्वार्थ सूत्रके अनुरूप ही है किन्तु उसका कोई क्रम नहीं है । दूसरे उसमें प्रतिपाद्य वस्तुओंकी केवल संख्या बतलाई है । जैसे पहले अध्यायमें लिखा है - 'तत्रेमे षड्जीव निकायाः ॥ १ ॥ पंच महाव्रतानि ||३|| पंचाणुव्रतानि ||३|| त्रीणि गुणव्रतानि ॥ ४ ॥ चत्वारि शिक्षाव्रतानि ॥ ५ ॥ तिस्त्रो गुप्तयः ||६|| पंचसमितयः ॥ ७॥ आदि । अर्थात् ( तत्र ) अर्हत् प्रवचनमें ये षड़जीवोंके छ निकाय हैं, पाँच महाव्रत हैं, पाँच अणुव्रत हैं, तीन गुणव्रत हैं, चार शिक्षाव्रत हैं, तीन गुप्तियाँ हैं, पाँच समितियाँ हैं । इस तरह केवल संख्या मात्र बतलाई है । और विषय वर्णन का कोई क्रम नहीं है । दूसरे अध्याय में लिखा हैं -सात तत्त्व हैं चार निक्षेप हैं । दो तप हैं आदि । तीसरे अध्यायके उत्तरार्धमें चौबीस तीर्थङ्कर, नौ बलदेव, नौ 'वासुदेव आदि बतलाये हैं | चौथे अध्यायका प्रारम्भ 'देवाश्चतुणिकाया: ' सूत्रसे होता है । बड़े तत्त्वार्थ सूत्रका यही एक सूत्र इसमें ज्योंका त्यों अपने स्थानपर पाया जाता है । संभव है अर्हत्प्रवचन के रचयिता प्रभाचन्द्रने उक्त प्रभाचन्द्रका तवार्थसूत्र देखा हो । अकलंकदेवने अपने तत्त्वार्थ वार्तिक में ( २-३८) 'उक्तं च अर्हत्प्रवचने' लिखकर उसके एक सूत्रको उद्धृत किया है जिससे प्रतीत होता है कि अर्हत्प्रवचन नामका भी कोई सूत्र ग्रन्थ था । शायद उसीके अनुकरणपर प्रभाचन्द्रने अपने इस सूत्र ग्रन्थको 'अर्हत्प्रवचन' नाम दिया है । और उसका प्रारम्भ करते हुए लिखा है - 'अर्हत्प्रवचनसूत्रं व्याख्यास्यामः - ' अर्थात् 'अर्हत्प्रवचन सूत्रका व्याख्यान करेंगे । प्रथम सूत्रके प्रारम्भमें आगत 'तत्र' पद उसीका निर्देश करता है । जिससे प्रकट होता है कि अर्हत्प्रवचनमें जो जो मुख्य तत्त्व हैं उन्हें इसमें बतलाया गया हैं । तद्यथा - ' माघनन्दि योगीन्द्ररचित शास्त्रसार समुच्चय - एक तीसरा सूत्र ग्रन्थ माघनन्दि योगीन्द्र विरचित है। उसमें उसका नाम शास्त्रसार समुच्चय दिया है । १. यह अर्हत्प्रवचन मा० प्र० माला बम्बईसे प्रकाशित सिद्धान्तसारादि संग्रहमें संगृहीत है । २. यह ग्रन्थ भी मा०प्र० मालासे प्रकाशित सिद्धान्तसारादिसंग्रह में संग्रहीत है ।

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