Book Title: Jain Sahitya ka Itihas 02
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 381
________________ तत्त्वार्थविषयक टीका-साहित्य : ३६९ सुखबोधाभिधां वृत्ति कृतां भट्टारकेण कुम्भनगरवास्तव्येन पंडितश्रीयोगदेवेन प्रकटयन्तु संशोधयन्तु बुधा यदत्रायुक्तमुक्तं किञ्चिन्मतिविभ्रमसंभवादिति । छः प्रचंड पंडितमंडली मौनव्रतदीक्षागुरोर्योगदेवविदुषः कृतो सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ती दशमः पादः समाप्तः । समाप्तेयं सुखबोधवृत्तिः पंडित श्रीयोगदेवकृता।' इससे प्रकट होता है 'पण्डित योगदेव भट्टारक थे, और कुम्भनगरके निवासी थे । भूपाल मार्तण्ड भुजबल भीमको सभामें उन्हें प्रतिष्ठा प्राप्त थी । उनके सामने प्रचण्ड पण्डित मण्डली मूक हो गई थी । श्री पण्डित बन्धुदेवके अनुग्रह से उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था।' यह पण्डित योगदेव कब हुए हैं, खोजने पर भी इसका कोई अनुसन्धान नहीं मिल सका। इन्होंने अपनी टीकामें किसी ग्रन्थका उद्धरण भी नहीं दिया। भास्कर नन्दिकी तत्त्वार्थ टीकाका नाम भी सुखबोध है । यह टीका मैसूर से प्रकाशित हो चुकी है। हमने नाम साम्यके कारण उसके साथ भी इस टीका का मिलान किया। किन्तु दोनोंमें हमें कोई साम्य नहीं मिला । अतः इनके समय के विषयमें अभी कुछ लिखने में हम असमर्थ हैं । किन्तु इसकी एक प्रति जयपुरके सेठ वधीचन्द्रजीके मन्दिरमें वि० सं० १६३८ की लिखी हुई है। अतः इससे पूर्व ही इसका रचा जाना निश्चित है । ___ तत्त्वार्थ सूत्रकी दूसरी टीकाका नाम तत्त्वार्थ रत्न प्रभाकर है। इसके प्रारम्भमें टीकाकारने एक प्राकृत गाथाके द्वारा मंगलाचरण करनेके पश्चात् १४ श्लोंकोंके द्वारा इस टीकाकी उत्पत्तिका वृत्तान्त तथा अपना परिचय दिया है। लिखा है-इसी विख्यात भारत देशके हरन नामक जनपदमें सुनाम नाम का नगर है। वहाँ आर्य नयसेनकी परम्परामें धर्मचन्द्र नामके भट्टारक हुए, जो काष्ठासंधी थे। उनके पट्टपर प्रभाचन्द्र हुए। एक दिन वह धर्मका उपदेश दे रहे थे, काल्हुके पुत्र साधु हावाने प्रणाम करके निवेदन किया कि मुनिवर तत्त्वार्थका कथन करें । तब प्रभाचन्द्रने अपनी अल्पज्ञता बतलाये हुए तत्त्वार्थका कथन किया। वहाँसे वह विहार करके सकीट नामके नगरमें आये और जिनालयमें ठहर गये। वहाँ लम्बकञ्चुकान्वयमें साधु सकतुका पुत्र मोनिका था जो विद्वान और गुणी था उसने निवेदन किया-मुनिवर मेरे आगे सरल तत्त्वार्थ का कथन करें। तब भट्टारक प्रभाचन्द्रने तत्त्वाथसूत्रके इस सुगमार्थ टिप्पणकी रचना की। रचनाकाल आदि-इस प्रन्थके अन्तमें भी प्रशस्ति है । उसमें लिखा है कि जम्बूद्वीपके भारत देशमें पञ्चाल नामका देश है, जो जैन तीर्थोसे सुशोभित है। २४

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