Book Title: Jain Sahitya ka Itihas 02
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 359
________________ तत्त्वार्थविषयक टीका-साहित्य : ३४७ प्रभाचन्द्रकृत टीकात्रय कुन्दकुन्दके प्रवचनसार, पञ्चास्तिकाय और समयसार पर भी प्रभाचन्द्रकृत टीकाएं उपलब्ध हैं , किन्तु अभी तक उनका प्रकाशन नही हुआ है । प्रवचनसार पर उपलब्ध टीकाका नाम 'प्रवचनसार सरोज' भास्कर' है । ग्रन्थकी अवान्तर सन्धियोंमें तथा अन्तमें यह नाम पाया जाता है। यथा-इति श्री प्रभाचन्द्र विरचिते प्रवचनसारसरोजभास्करे शुद्धोपयोगाधिकारः समाप्तः ।' इसी तरह पञ्चास्तिकायकी टीकाका नाम पञ्चास्तिकाय प्रदीप है। यथा-'इति श्री प्रभाचन्द्र विरचिते पञ्चास्तिकायप्रदोपे मोक्षमार्गनवपूदार्थचूलिकाधिकारः समाप्तः।' इन तीनों ही टीकाओंमें गाथाओंका केवल शब्दार्थरूप व्याख्यान है और समयसारकी टीकाके एक अन्तिम पद्यमें 'व्याख्यातः स परिस्फुटामलदया शब्दार्थतो निर्मल:' लिखकर यह बात व्यक्त भी कर दी है। इस व्याख्यानसे गाथाके प्रत्येक शब्दका अर्थ स्पष्ट हो जाता है। अमृतचन्द्रकी टीकामें शब्दार्थरूप व्याख्यान नहीं है अतः उसके पढ़नेसे यद्यपि कुन्दकुन्दका हार्द स्पष्ट हो जाता है तथापि गाथागत प्रत्येक शब्दका अर्थ स्पष्ट नहीं होता। सम्भवतया उसी कमीकी पतिके लिये प्रभाचन्द्रने तीनों टीकाओंकी रचना की है। इसीसे उनकी टीकाओंमें लम्बे चौड़े वर्णनात्मक वाक्य नहीं हैं केवल खण्डान्वय रूपसे गाथाका व्याख्यान मात्र है। किन्तु जहाँ कहीं दार्शनिक चर्चा आई है वहाँ बराबर दार्शनिक प्रभाचन्द्रकी दार्शनिक शैलीका ही दर्शन होता है। इसका निर्देश आगे किया जायेगा। अमृतचन्द्र तथा जयसेनकी टीकाओंके साथ तुलना करनेसे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि जहाँ अमृतचन्द्रकी टीकाका प्रभाव प्रवचन सरोज भास्कर वगैरह पर है, वहाँ प्रभाचन्द्रकी टोकाओंका प्रभाव जयसेनकी टीकाओं पर है। किन्तु प्रभाचन्द्रके द्वारा स्वीकृत गाथाओंका परिमाण न तो अमृतचन्द्रसे ही मेल खाता है और न जयसेनसे ही। अमृतचन्द्र के द्वारा स्वीकृत गाथाओंसे प्रभाचन्द्रके द्वारा १. इन टीकाओंकी एक प्रति हमें जयपुरस्थ श्री महावीर अतिशय क्षेत्रके अनुसन्धान विभागसे पं० कस्तूरचन्दजी काशलीवाल द्वारा प्राप्त हुई थी जिसमेंसे प्र० स० भा० की प्रति १५७७ सं० की लिखी हुई है। समयसार की टीकाकी प्रति हमने मैनपुरीके एक मन्दिरमें देखी थी।

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