Book Title: Jain Sahitya ka Itihas 02
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 341
________________ तत्त्वार्थविषयक टीका-साहित्य : ३२९ उदयनका नामोल्लेख किया है। अत. सिद्धसेनीय वृत्तिको दार्शनिक योग्यता तत्त्वार्थवातिकके समकक्ष न होते हुए भी आदरणीय है। समयविचार-सिद्धसेनाचार्यने अपनी एकमात्र उपलब्ध कृति तत्त्वार्थ वृत्ति में उसका रचनाकाल तो नही दिया है किन्तु अन्तमें अपनी गुरुपरम्परा अवश्य दी है । उसके अनुसार दिन्न' गगि क्षमाश्रमण नामके एक प्रतिभाशाली प्रख्यातकीर्ति आचार्य थे, जो शील और संयमके धारी थे, श्रुतनिधि थे, मोक्षार्थियोंके अग्रणी और परमतपस्वी थे ॥ उनके सिंहसूर नामके शिष्य हुए वह परवादियोंके जीतनेमें पटु थे, सिंहवृत्तिके धारक थे, समस्त आगमोंके ज्ञाता थे । आज भी उनकी कीर्ति अविश्रान्तरूपसे दिगन्त तक भ्रमण करती है । उनके भास्वामी नामक शिष्य थे, जो विद्वानोंमें अग्रेसर थे, समस्त शास्त्रोंके ज्ञाता थे, महाश्रमण थे, क्षमाशील थे और गच्छाधिपति थे। उनके चरणरजके एककण, अल्पबुद्धि, स्वल्प आगमोंके ज्ञाता सिद्धसेन गणिने इस तत्त्वार्थशास्त्र टीकाको रचा। सिद्धसेनके द्वारा निर्दिष्ट अपनी गुर्वावलीमें एक 'सिंहसूर' नाम ऐसा है जिसके सम्बन्धमें आज भी यह कहा जा सकता है कि 'आज भी उनकी कीर्ति अविश्रान्त रूपसे दिगन्त तक भ्रमण करती है।' १. 'आसीद् दिन्नगणिः क्षमाश्रमणतां प्रापत् क्रमेणव यो विद्वत्सु प्रतिभागुणेन जयिना प्रख्यातकीर्तिभृशम् । वोढो शीलभरस्य सच्छ्र तनिधिर्मोक्षार्थिनामग्रणी जज्वालामलमुच्चकैनिजतपस्तेजोभिख्याहतम् ॥१॥ तस्याभूत् परवादिनिर्जयपटुः सैंहीं दधच्छूरतां नाम्ना व्यज्यत सिंहसूर इति च ज्ञाताखिलार्थागमः । शिष्यः शिष्टजनप्रियः प्रियहितव्याहारचेष्टाश्रयात् । भव्यानां शरणं भवीधपतनक्लेशादितानां भुवि ॥३॥ शिष्यस्तस्य बभुव राजि (ज?)कशिरोरत्नप्रभाजालक व्यासनाच्छुरितस्फुरन्नखमणिप्रोद्भासिपादद्वयः । भास्वामीति विजित्य नाम जगृहे यस्तेजसां सम्पदा भास्वन्तं भवनिर्जयोद्यतमतिविद्वज्जनाग्रेसरः ॥५॥ Y तत्पादरजोवयवः स्वल्पागमशेमुषीकबहुजाड्यः ।। तत्त्वार्थशास्त्रटीकामिमां व्यधात् सिद्धसेनगणिः ॥७॥

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