Book Title: Jain Sahitya ka Itihas 02
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 350
________________ ३३८ : जैनसाहित्यका इतिहास लक्षण परक गाथाओंके संग्रहको लघुद्रव्य संग्रह और द्रव्यसंग्रहको वृहद्रव्यसंग्रह नाम दे दिया। किन्तु द्रव्यसंग्रह पर एक संक्षिप्त टीका प्रभाचन्द्रकृत भी उपलब्ध है, उसमें ब्रह्मदेवके द्वारा कथित उक्त बातोंका कोई संकेत तक नहीं है। हां, उसके आध मंगल श्लोकके अन्तिम चरणमें 'षद्रव्य निर्णयमहं प्रकटं प्रवक्ष्ये लिखा है । तथा प्रथम गाथाकी उत्थानिकामें लिखा है-'अथेष्टदेवताविशेषं नमस्कृत्य महामुनि संद्धान्तिक श्री नेमिचन्द्रप्रतिपादितानां षद्रव्याणां स्वल्पप्रबोधार्थ संक्षेपतया विवरणं करिष्ये।' इस तरह उन्होंने द्रव्यसंग्रहमें षद्रव्योंका विवरण होनेसे षट्द्रव्योंके निर्णयको कहनेकी प्रतिज्ञा की है, किन्तु ग्रन्थके नामादिके सम्बन्धमें कुछ भी नहीं कहा । यह टीका ब्रह्मदेवकी टीकासे प्राचीन है, इतना ही नहीं, किन्तु द्रव्यसंग्रहकी रचनाके पश्चात् विना अधिक अन्तरालके इसकी रचना हुई प्रतीत होती है। अतः ब्रह्मदेवके उक्त कथनमें कहाँ तक तथ्य हैं, प्रमाणान्तरके अभावमें यह कहना शक्य नहीं है। लघु द्रव्यसग्रह प्रथम लघु द्रव्यसंग्रहका ही परिचय कराया जाता है। इसकी प्रथम गाथामें ग्रन्थकारने जिनदेवके जयकारके साथ ही साथ ग्रन्थमें वर्णित विषयका भी निर्देश करते हुए कहा है कि जिसने छ द्रव्य, पाँच अस्तिकाय, सात तत्त्व और नौ पदार्थोंका तथा उत्पाद व्यय ध्रौव्यका कथन किया, वे जिन जयवन्त हों। तदनुसार इसमें छहों द्रव्यों, पाँच अस्तिकायों, सात तत्त्वों और नौ पदार्थोका स्वरूप बतलानेके साथ ही साथ उत्पाद व्यय ध्रौव्य और ध्यानका भी निर्देश कर दिया है। पाँच अस्तिकाय तो द्रव्योंमें ही गभित हो जाते हैं क्योंकि जीव पुद्गल, धर्म, अधर्म आकाश और काल ये छ द्रव्य है, और कालके सिवाय पाँचों द्रव्य बहुप्रदेशी होनेसे अस्तिकाय कहे जाते हैं। इसी तरह जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य और पाप ये नौ पदार्थ हैं। इनमेंसे पुण्य और पापको अलग कर देनेपर शेषको सात तत्त्व कहते हैं । इनमेंसे द्रव्योंका स्वरूप तो विस्तारसे बतलाया हैं किन्तु पदार्थोका जिनमें तत्त्व भी समाविष्ट है-स्वरूप बहुत संक्षेपसे बतलाया है। पहली गाथामें तो वक्तव्य विषयके निर्देशके साथ मंगलाचरण है । दूसरी गाथामें द्रव्यों और अस्तिकायोंका तथा तीसरी गाथामें तत्त्वों और पदार्थोंका नाम निर्देश है । ग्यारह गाथाओंमें द्रव्योंका तथा पांच गाथाओंमें तत्त्वों और पदार्थोंका स्वरूप बतलाया है। दो गाथाओंके द्वारा उत्पाद व्यय ध्रौव्यका कथन है। दो गाथाओंके द्वारा ध्यान करनेका उपदेश है। २४वीं गाथामें नमस्कार और पच्चीसवोंमें नामादि कथन हैं । संक्षिप्त कथनकी दृष्टिसे रचना महत्त्वपूर्ण है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411