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भूगोल-खगोल विषयक साहित्य : ७३ चैत्यवृक्ष, व्यन्तरोंके अवान्तर भेद, इन्द्रों के नाम, परिवार देव, आयु आदिका कथन है।
४. चौथे ज्योतिर्लोक अधिकारमें पहले ज्योतिषी देवोंके पांच भेद बतलाये हैं फिर चूंकि द्वीप समुद्रोंका कथन किये बिना ज्योतिषी देवोंका कथन नहीं हो सकता क्योंकि वे सब द्वीप-समुद्रोंके ऊपर फैले हुए है, अतः आदि और अन्तके सोलह-सोलह द्वीपों और सोलह सोलह समुद्रोंके नाम गिनाये हैं, और उनके सूची व्यास तथा वलय व्यासका कथन करते हुए सूची आनयन तथा परिधि और क्षेत्रफल लानेके लिये करणसूत्र बतलाये हैं। साथ ही समुद्रोंके जलका स्वाद, उनमें जलचरोंका भावाभाव, स्वयंभुरमण द्वीपके बाह्य भागमें पाये जाने वाले त्रसजीवोंकी उत्कृष्ट अवगाहना आदिका कथन किया है । ति० प० में यह सब कथन पाँचवें तिर्यग्लोक अधिकारके प्रारम्भमें किया गया है। चूकि त्रि० सा० में इस नामका कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं है इसलिये प्रसंगवश ज्योतिलोकाधिकारके आदिमें ही आवश्यक बातोंका कथन कर दिया है। इस प्रासंगिक कथनके पश्चात् भूमितलसे तारा आदिकी ऊँचाई बतलाई है जो ति० प० के ही समान है। आगे ज्योतिविमानोंका स्वरूप, राहु और अरिष्ट ग्रहोंके विमानका व्यास तथा उनका कार्य, चन्द्रमा आदिकी किरणोंका प्रमाण, चन्द्रमण्डलकी हानि वृद्धि, जम्बूद्वीपसे लेकर पुष्कराध पर्यन्त चन्द्रमा और सूर्योकी संख्या, मानुषोत्तरसे परे चन्द्रमा और सूर्यके अवस्थानका क्रम, असंख्यात द्वीप समुद्रोंके ऊपर स्थित चन्द्र और सूर्य आदिकी संख्या निकालनेकी विधि, अठासी ग्रहोंके नाम, ताराओंकी संख्या, चन्द्र और सूर्यका चार क्षेत्र, दिन रातकी हानि वृद्धि, दक्षिणायन, उत्तरायण, ताप और तमकी हानि वृद्धि, नक्षत्र भुक्ति, अधिक मासकी उत्पत्ति, विषुप, नक्षत्रोंके नामादि तथा ज्योतिष्क देवों और देवियोंकी आयुका कथन है।
५. पांचवे वैमानिक लोकाधिकारमें कल्प और कल्पातीत विमानोंको बतलाकर सोलह स्वर्गों में विमानोंकी संख्या, इन्द्रक विमानोंका प्रमाणादि, श्रेणिबद्ध विमानोंका अवस्थान, दक्षिणेन्द्रों और उत्तरेन्द्रोंका निवास, सामानिक आदि देवोंकी संख्या, कल्पोंमें स्त्रियोंके उत्पत्ति स्थान, प्रवीचार, विक्रिया, अवधिज्ञानका विषय, जन्म मरणका अन्तरकाल, इन्द्रादिका उत्कृष्ट विरह काल, आयु, लौकान्तिक देवोंका स्वरूपादि, देवागंनाओंकी आयु, उछ्वास व आहार ग्रहणका काल, गति-आगति, आदिका कथन है। चूंकि वैमानिक लोकसे ऊपर ही सिद्ध जीवोंका स्थान है अतः उनका कथन भी इसी अधिकारके अन्तमें कर दिया गया है। ति० १० में सिद्धोंका कथन एक पृथक् अधिकारमें किया गया है।