Book Title: Jain Sahitya ka Itihas 02
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 291
________________ तत्त्वार्थविषयक टीका-साहित्य : २७९ जिनेन्द्र बद्धि है । किन्तु वे बौद्ध साधु थे। नामसाम्यके कारण कहीं पूज्यपादको पाणिनि व्याकरणपर न्यासका रचयिता न समझ लिया गया हो, ऐसा सन्देह होता है क्योंकि इसका समर्थन अन्यत्रसे नहीं होता। वैद्यक ग्रन्थ-नगर ताल्लुके के शिला लेखमें पूज्यपाद रचित एक वैद्यक ग्रन्थका भी उल्लेख है। ज्ञानार्णवके 'अपाकुर्वन्ति यद्वाचः' इत्यादि स्मरणात्मक श्लोक से भी ऐसा ध्वनित होता है कि पूज्यपादका कोई वैद्यक ग्रन्थ भी था । पूनेके भण्डार रिसर्च इन्स्टीटयूटमें पूज्यपादकृत वैद्यक नामका एक ग्रन्थ है। किन्तु वह आधुनिक कनड़ी भाषामें लिखा हुआ कनड़ी भाषाका ग्रन्थ है । उसमें न तो पूज्यपादका कोई उल्लेख है और न वह पृज्यपादका बनाया हुआ है। वैद्यसार नामका एक ग्रन्थ आरासे प्रकाशित हुआ है। उसमें जो प्रयोग दिये हुए है उनके अन्तमें 'पूज्यपादेन भाषितः' या निमितः' जैसे शब्दोंका प्रयोग किया गया है। इससे तथा रचना शैली आदिसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वह भी इन पूज्यपादका बनाया हुआ नहीं है । ___ इसी तरह आरासे प्रकाशित प्रशस्तिसंग्रहमें निदान मुक्तावली और मदन कामरत्न नामके दो वैद्यक ग्रन्थोंका परिचय दिया है। जिनमें उन्हे पूज्यपादके द्वारा रचित बतलाया गया है । किन्तु वे पूज्यपाद रचित नहीं हैं । विजय नगरके राजा हरिहरके समयमें एक मंगराज नामके कनड़ी कवि हुए हैं । उनका अस्तित्वकाल वि० सं० १४१६ के लगभग है । स्थावरविषोंकी प्रक्रिया और चिकित्सा पर उनका खगेन्द्र मणिदर्पण नामका ग्रन्थ है। वे उसमें अपनेको पूज्यपादका शिष्य बतलाते हैं और अपने ग्रन्थको पूज्यपादके वैद्यक ग्रन्थ से संग्रहीत बतलाते हैं । शोलापुरसे उग्रादित्याचार्यका 'कल्याण कारक' नामका ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है। उसमें भी अनेक जगह 'पूज्यपादेन भाषित' कहकर पूज्यपादके वैद्यक ग्रन्थका उल्लेख किया गया है । अतः पूज्यपाद देवनन्दिका वैद्यक विषय पर कोई ग्रन्थ अवश्य रहा है, ऐसा प्रतीत होता है। श्रवणवल गोलाके एक शिलालेखमें जो उन्हें अनुपम औषधऋद्धिका धारी बतलाया है उससे भी उनके चिकित्सा शास्त्रमें निपुणत्वका ही समर्थन होता है। तत्त्वार्थसूत्रकी सर्वार्थसिद्धि टीकापर आगे विस्तारसे प्रकाश डाला जायेगा। छन्दशास्त्र और जैनाभिषेक नामके ग्रन्थ अनुपलब्ध है और इनका अन्यत्र भी कोई संकेत नहीं मिलता। समाधितंत्र और इष्टोपदेश नामक ग्रन्थोंके सम्बन्धमें आध्यात्मिक ग्रन्थोंके इतिहासमें लिखा जा चुका है । दशभक्ति ( संस्कृत )-प्रभाचन्दने अपने क्रिया कलापमें इनका कर्ता

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