Book Title: Jain Sahitya ka Itihas 02
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 328
________________ ३१६ : जैनसाहित्यका इतिहास अकलकदेव का समय अकलंकदेवके समयके सम्बन्धमें 'एतद्देशीय तथा विदेशी अनेक विद्वानोंने विचार किया है । न्याय कुमुदचन्द्रके प्रथम भागकी प्रस्तावनामें हमने अकलंकदेव का समय ई० ६२७ से ६८० तक निश्चित किया था। ओर स्व० पं० महेन्द्र कुमारजी न्यायाचार्यने सिद्धिविनिश्चयकी अपनी प्रस्तावनामें ई० ७२० से ७८० तकका समय निश्चित किया है। इस तरहसे इन दोनों समयोंके मध्यमें एक शताब्दीका अन्तर है। जिन अन्य विद्वानोंने अकलंकके समय पर विचार किया है वे सब प्रायः इन्हीं दोनोंमें से किसी एक मतके समर्थक हैं । अतः इन्हीं दोनों मतोंको आधार बनाकर विचार करना उचित होगा। अकलंकदेवका उपलब्ध प्राचीनतम उल्लेख धनञ्जय कविके नाममाला कोशमें है प्रमाणमकलङ्कस्य पूज्यपादस्य लक्षणम् । धनञ्जयकवेः काव्यं रत्नत्रयमपश्चिमम् ॥ 'अकलङ्कका प्रमाण, पूज्यपादका व्याकरण और धनंजयकविका काव्य, ये तीनों अपश्चिम रत्न हैं।' १. स्व०डा०के०वी०पाठक-(भर्तृहरि और कुमारिल'-ज०व०रा०ए०सो० भाग १८)। डॉ. सतीशचन्द विद्याभूषण-(हि०ई०ला०,पृ० १८६) । डॉ. ए०एस० आलटेकर (दी राष्ट्र कूटाजू एण्ड देअर टाइम्स, पृ० ४०९)। पं० नाथूरामजी प्रेमी (ज.हि०, भा० ११,अ० १-८)। डॉ० वी०ए० सालेतोर (मिडि० जनि पृ०, ३५)। आर नरसिंहाचार्य (इन्स०एट श्रवणगोलाके द्वि० सं०की भूमिका) । एस० श्री कण्ठ शास्वी (ए०भा०ओरि०ई० भाग१२में 'दी एज आफ़ शंकर')। पं० जुगलकिशोर मुख्तार (जैसा०इ०वि०प्र० पृ० ५४१)। डा० ए०एन० उपाध्ये-(डॉ० पाठकाज व्यु ऑन अनन्तवीर्याज डेट-ए. भा० रि० इ०, भाग १३, पृ० १६१)। पं० कैलाशचन्द शास्त्री (न्या० कु०च०, प्रथम भागकी प्रस्ता०, पृ० १०४) । डॉ. ज्योति प्रसाद(जैन संदेश शोघांक) पिं० महेन्द्रकुमारजी न्याचार्य-सि० वि०की प्रस्ता० ४४ आदि । और| डॉ० आर० जी० भण्डारकर ( शान्तरक्षितासूरिफरेसस् टु कुमारिलाज अटर्स ओन समन्तभद्र एण्ड अकलंक )-ए० भां, ओ० रि० इं० भाग ११, पृ० १५५ । पिटर्सन-द्वितीय रिपोर्ट सर्च आफ दी मैन्य, पृ० ७९ । लुइस राइसज० रा० ए० सो०, भाग १५, पृ० २९९ । डॉ. विंटरनिट्स-'हि० ई० लि० भाग २, पृ० ५८८। डॉ० ए० बी० कोष (हि० सं० लि., पृ० ४९७ ।

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