Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 40
________________ साहिल संशोधक " From र मजिसके बाद मुह संघका प्रथम पया कि "मला सावे यासाने इन सबसे भी पास यहो पाया जाता सामागोमरतम् । देहि समकागम' की एक शी !! १२-पीनामानिराश पडवपुरायका विमानाजास संपूर्ण कथनसे मालूम हो. सा है कि शामि समन्तभद्ने तमीमांसा रेषा ग) रो-शारा हमारेकी इस पापा मारा सामी सम परीक्षा सार ही 'धको न. म 'सार' विशेषण लाथ माह सोशस्तिमाकरते हुए करते हैं कि उन्होंने अपने गया एक अंग सौरसता सादिम भाग माना देवशास- (लिमाय स्वा जाय तो अपत्यासासनको मो सहामापका तत्त्वाचनको कारा महौ । सिराजशे : तार अंग जहना होगा। परंतु ऐसा नहीं कहा नगर को संसार उपस कर दिया। जास्वशासन समका. महावीर भग. है। इससे अगरको सान सौर मी स. दातोलिये दिसावेषणका रुपाय Tोजित होती है और यह ६.या ला निपाए वश माना जाता है।नीतेहै कि संसार, सम्मामलको बिशेष इसिरका करो और को स्थशिससे भी प्राय: कार भी जमका रेडागा अंथरी तुका है। सासाराम यनित होता है:-- पदहवास कोई यह अंश न होकर व AHERE ART ENT, पीमाएका सैकस जलका शेरलग मलेशEIRRial लारप-होताले कोई कसर नहीं थी कि इस सभाम:ASTER महासंघका की नलेखन करले इसके के को समयमा बस मेले मेशा ही बोल किया जाता। -काशा इस संबंध नारा लो और भी अधिकताके साथ जैनागरस्यका हुना होगकिर इसका नाम མསྶགེ་ ལ ་བྷུཉྫཔེས པཎོ ལ འིrསྨནོབུ་ཝཱ་ समिरमेस्सीस्य | मानताका ही नामोरेखा rat है! मदेवारकी सहजताका समर्थ जान १३.श्रीमानस्थानीने सुसासन 4 समारो " की का हिस्ते हर सबसे पहलेजसको हत्या -- हानिस्क। ऐसी हालत देपागम को भी युकपास" *an s wer शादः म सरसगंभहसितमहामाप्पका कोई संगनमान से देख RAPER हर एक पल ध कहना चाहिये। सम्म पनि पास १५ - बीभूषपतिहिनित न्यायत्री का में सर्वशकी सिा करते हुए भासमी

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