Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 100
________________ जैन साहित्य संशोधक ८ पण पटलं तो स्पष्ट देखाय छे के पाछळना समयमां ए विचार तो खास रूढ बनी गयो हतो के चारे मनो अधिकारी एक मात्र ब्राह्मण वर्णज होई शके छे. क्षत्रियो माटे त्रण, वैश्यो माटे वे अने शूद्र माटे फक्त एक आश्रमनो अधिकार जणाववामां आव्यो छे' आळी हकीकत उपरथी ए विचार तो निश्चित लागे छे, के प्राचीन काळमां पण ब्राह्मणेतर संन्यासिओ, ब्राह्मणसंन्यासिओथी एक जुदाज वर्गना तथा पृथग्भूत मनाता हता. अने तेथी आपणने एम मानवानुं कारण मळे छे के ब्राह्मणेतर संन्यासिओनी आ प्रकारनी अवस्थाने लईने एवा संप्रदायोनो जन्म थयो हतो के जेमणे ब्राह्मणधर्म सामे पोतानो प्रकट विरोध जाहेर कर्यो हतो. आवाज कारणने लईने वेशधारिओ - पाखंडिओ उत्पन्न थया हता वो भाव वशिष्ठना कथन उपरथी पण तारवी शकाय छे. त्यां एम जणावेलुं छे के केदलाक सं न्यासिभए धार्मिक क्रियाओ ( विधिओ ) करवी छोडी दीधी हती अने वळी केटलाके तो आथी पण आगळ वधी वेदमंत्रोच्चारण पण छोडी दीधुं हतुं. आ प्रकारे क्रियामानं उल्लंघन करनाराओने उद्दे शीने वशिष्टमां नीचे प्रमाणेनुं कथन करेलुं छे, के 'भले कोई मनुष्य सघळी धार्मिक विधिओनुं अनुछान छोडी दे परंतु वेदमंत्रोच्चारण तो तेणे कदापि न छोड़वं जोईए. कारण के वेदनी उपेक्षा करवाथी शूद्र थवाय छे. तेला माटे तेणे तेम करडं नहीं. ' आटला बधा भारपूर्वक करेला प्रतिबंध उपरथी सहज अनुमान थाय छे के आधुं क्रियानुष्टान एक वखतेखरेखर बंध थयुंज हशे. वळी आ उपरथी जो आपणे एटलं अनुमान करी शकता होईए के केटलाक संन्यासिओए आवी ते वेदोच्चारण- वेदाभ्यास करवो पण छोडी दीधो हशे, तो आपणे तेवं अनुमान पण करी शकीर, के बीजाभए, वेदने ईश्वरप्रणीत तथा स्वतः प्रमाणभूत तरीके मानवानो इनकार [ भाग १ पण कर्यो हशे आ विचार उपरथी ए कल्पना सहज करी शकाय तेवी छे के आ मार्ग स्वीकारनार तेज पुरुषो हता जेओ एक प्रकारना पृथग्भूत अने ब्राह्मणेतर संन्यासिओ मनाता हता. आ रीते प्रस्तुत विवेचन उपरथी एक तो आपणे ए बाबत जोई शकीए छीए के जैन अने बौद्ध जेवा विरोधी संप्रदायोना मतभेदनं वीज चतुर्थ आश्रमनी संस्थामा रहेलुं हतुं भने बीजं ए पण आपणे जोई शकीए छीए के मतान्तर धारिओए चतुर्थ आध्रमनुं अनुसरण कर्यु हतुं. आ उपरथी आपणे मानवं पडे छे के जैनधर्म अने बुद्धधर्म ए ब्राह्मणधर्ममाथी उत्पन्न थपला एक आकस्मिक सुधारा स्वरूप मतो नथी परंतु लांबा वखतथी चालता भवता एक धार्मिक आन्दोलनना क्रमिक परिणाम स्वरूप छे. wwwm man won a drun १. Maxmuller, The Hibbert Lectures, P. 343. 2 Chapter X, 1. Bubler's 'Translation, आपणे उपर जोई गया तेम, जैनोनी तेमना छैला तीर्थकर संबंधी परंपरांगत कथाओ; अथवा जैन साधुओ माटे विहित करवामां आवेला आचारो; अगर ते धर्मना श्रद्धाळु गृहस्थो माटे योजांएली धार्मिक क्रियाओ उपरथी एवं कांई पण सिद्ध थतुं नथी के जेथी आपणने एम मानवानुं कारण मळे जैनधर्म ए बौद्धधर्ममांथी निकळ्यो हतो. ए उपरांत बन्ने धर्मोना मुख्य सिद्धान्तो मां पण परस्पर एटलो बधो भेद रहेलो छे के जेथी आ बन्ने धर्मोनुं मूळ उत्पत्ति स्थान एक हशे एम पण मानी शकायतेम नथी. बुद्धे निर्वाणनी अवस्थाना संवधमां गमे तेम विचार्य अगर उपदेश्यं होय अर्थात् ते अवस्थाने या तो सर्वथा अभावात्मक बतावी होय के पछी तेने एक अगम्य अने अचिन्त्य सत्ताचाळी कल्पी होय; परंतु एटलुं तो निःसंदेह छे के तेमणे ब्राह्मणधर्मना आत्मवादनो के जे वादमां विश्वदेवतावादिओ तथा अणुचादिओना मत प्रमाणे आत्मा स्वतंत्र अने नित्य मानवामां आयो छे तेनो, स्पष्ट विरोध कर्यो हता. अने ते विरोधज ए बौद्धधर्मनी एक खास विशिष्टता छे. परंतु आ विषयनो ज्यारे जैनोनो सिद्वान्त तपासीप छीपतो, ते संपूर्णरीते ब्राह्मणमतने मळतो आवे छे. जे भेद छे ते मात्र एटलोज छे के जैनो ज्यारे आत्माने मर्यादित आकाशव्यापी माने छे; त्यारे सांख्य, न्याय अमे वैशेषिक दर्शन जेवा प्रा

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