Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 99
________________ अंक २] तरीके स्वीकारेलो छे, भने ब्राह्मणेतर जातिना पुरुपोने माटे पण तेमणे तेनो प्रयोग करेलो छे. स्थळे जण जोई के जनो तेमज बौद्धोनो भिक्षमार्ग, ब्राह्मणोना संन्यासमार्गना अनुकरण रूप होवा छतां, ते मूळमां तथा मुख्यरीते क्षत्रियो माटेज योजाएको हतो. प्रो. ओल्डनवर्गना दर्शा· व्या मुजब बुद्धे प्रथम पंकिमां उमराव अने अमीर लोकोनेज स्थान आप्यं हतं. कारण के, बनारसमां आपला पोताना प्रथम उपदेशमां, बुद्धे पोताना धर्म - ना संबंधां हतुं के ' यस्सत्थाय कुलपुत्ता सम्मदेव अगारस्मा अनगारियं पव्वजन्ति जेने माटे कुलीन जातिना पुत्रो घर छोडीने अनगारता स्वीकारे छे. ३ डॉ. हर्मन जेकोवीनी जैन सूत्रांनी प्रस्तावना जैनो पण ब्राह्मणो करतां क्षत्रियोने उच्चकोटिना मानता हता, ए बाबत, महावीरना गर्भसंक्रमना संबंधमां जे एक आश्चर्यभरेली पुराण कथा प्रसिद्ध क्रेते उपरथी सावीत थाय छे. ते दंतकथा एवी छे h - महावीरनो गर्भ देवानंदा ब्राह्मणीनी कुक्षिमांथी त्रिशला क्षत्रियाणानी कुक्षिमां फेरववामां आव्यो हतो. अने ते करवानुं कारण मात्र एटकुंज वताववामां आव्युं छे के ब्राह्मणी अगर अन्य कोई नीच जातिनी स्त्रीला उदरथी तीर्थकरनो जन्म थई शके नहीं. १ Buddha, soin Lebon, &c., p. 157 secy. २. महावग्ग १, ६, १२. ३. दिगंबरी आ दंतकथाने युक्तिशून्य कही, एनो अस्थीकार करे छे. परंतु श्वेतांवरो तेने दृढतापूर्वक साचा जणावे छे. आ दंतकथा आचारांग तथा कल्पसूत्र आदि घणा प्रथमां मळी आवे छे, तेथी तेनां प्राचीनतग्मां तो आपणने शंका रहती नथी. परंतु ए कांई स्पष्ट समजातुं नथी के कया कारणधी आयुक्तिशून्य दंतक्म्या उत्पन्न थई लोकमां प्रचार पामी हो ? आ अंधकारप्रस्त प्रश्न उपर मने जो अभिप्राय आपवानी छूट होय तो, माई तो एवं मानवु छे के सिद्धार्थने ब्राह्मणी देवानंदा - जे महावीरनी साची माता हती ते भने क्षत्रियाणी त्रिशला एम वे स्त्रीओ हती. पहेली स्त्रीना पति तरीके बताश्वामां आवतुं ऋषभदत्तनुं नाम घणुं प्राचीन होय तेम लागतुं नधी. कारण के जो ते प्राचीन होय तो तेनुं प्राकृत रूप 'उसमदत्त ' थवाने बदले प्रायः 'उसभदिन' एवं ८५ वीजी वाजुए जोतां ब्राह्मण संन्यासिओ प पोताना जेवाज परम आस्तिक ब्राह्मणेतर जातीय संन्यासिओने स्वसमान उच्च कोटिना न होता मानता. कारण के पाछळना समयमां एवो मत प्रचलित थपलो स्पष्ट देखाय छे के ब्राह्मण सिवाय अन्य कोई वर्णने चतुर्थ आश्रमनो अधिकार हतो नहीं आ भतना प्रमाणमां, प्रो. बुल्हरना जणाववा प्रमाणे, मनुनो ६, ९७ मो श्लोक बताववामां आवे छे. परंतु, भिन्न भिन्न टीकाकारोना अभिप्राया तरफ दृष्टिपात करतां, आ श्लोकना अर्थना संगधमां वधा टीकाकारो एक मत थता जगाता नथी. तेथी आ विवादग्रस्त उल्लेखने बाजुए मूकीए तो थ जोईए. विशेपमां, आ न म पण एक जनने छाजे तेवु छे; ब्राह्मणने छाजे तेवुं नथी. तेथी मारुं तो एम चोक्कस मानवुं धाय छेके पमदत्त ए फक्त जैनाए देवानंदाना बीजा पति तरीके एक कल्पी काढलो पुरुष छे. आपणे जाणीए डीए के सिद्धार्थ पोताना विशला साधना लमद्वारा अनेक ऊंची पदवीवाळा अने मोठा प्रभाववाळा पुरुषो साथै संबंध धराक्तो हतो. तेथी कदाचित् एवो विचार तेन उत्पन्न भयो होय, तो ते संभावित छे के महावीरने त्रिशलाना सपत्नीसुत तरीके प्रसिद्ध करवाने वदले औरस पुत्र तरीके जो जाहेर करवामां आवे ता वचारे लाभदायक बायत बनशे, कारण के तेम करवाथी, महावीर त्रिशलानां प्रभावशाली सगओना आश्रयनो हकदार बनी शकशे. आ दंतकथा लोकोमां विश्वासपात्र पण घणजि सहेलाईथी मनाई गई हो. कारण के महावीर तीर्थकर तरीके प्रसिद्धिम आव्या तेनी पहेलां घणां वर्षो अगाउ तेमनां मातापिता गुजरी गयां हर्ता. परंतु खरी वस्तुस्थिति लोकोनी स्मृतिमांधी, सर्वथा लुप्त नहीं थरे होय तेथी पाळधी गर्भसंक्रमनी आ कथा उपजानी काटवामां भावी हशे . आ कल्पनाना मूळ उत्पादक जैनो नधी. तेमणे तो मात्र देवकीनी कुक्षिमांथी रोहिणीनी कुक्षिमां थरला रुप्णना गर्भसंक्रमनी पौराणिक कथानुं स्पष्ट रीते अनुकरण कर्यु छे. आ उपरथी एम पण जणाय छे के जैनधर्मना विका सनी प्रथमनी सदीओमा कृष्णनी उपासना लोकप्रिय थई रही हती. कारण के जैनोए पोताना वावीशमा तीर्थकर अरिष्टनेमि जे एक प्रसिद्ध यादव हता, तेमनुं चरित्र लखवामां फेटलाक फेरफार सिवाय कृष्णनुं असुं जीवन यथार्थ रीते आलेखी दोधुं छे.

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