Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

View full book text
Previous | Next

Page 102
________________ जैन साहित्य संशोधक [भाग १ एक मात्र सुधारक समझाता हता. परंतु आमां व ग्रंथो, छेक ई० स० नी पांचमी शदीमां,-एटआश्चर्य उत्पन्न करवावाळी वावत ए छे के जैनो लेके ए संप्रदायती स्थापना थया पछी लगभग एक तेमज बौद्धो बन्ने वर्तमान युगना धर्मप्रवर्तकोनी हजार जेटलां को व्यतीत थयां बाद, लखाएला संख्या लगभग सरखीज माने छे.-एटलेके जैनो होवाथी तेना आधारे कोई पण सबळ अनुमानकरी २४ तीर्थंकरों माने छे अने वौद्धो २५ युद्धो माने छे. शकवाना संबंधमां ते मोटी शंका धरावे छे. जैनआ मान्यताना विषयमा हुए वातनी ना नथी पाडी धर्मना संबंधमां तनो पयो अभिप्राय छे के ए संप्रशकतो, के, आमां एक संप्रदायनी वीजा संप्रदाय दायना, ते प्राचीन काळथी लई पुस्तको लखाता उपर असर नहीं थई होय. परंतु हुँपटलुं तो दृढ़ता- सुधीना समय सुधीना, स्वसंवेदित अने सतत पूर्वक कहीं शकुं हुं के आ बन्नेमांना कयाधर्मे प्रथ- एवा मस्तित्वनो-अर्थात् तेना खास खास सिद्धा म आ मान्यता शोधी काढी हती; अगर तो सौथो तो भने नौधोनी निरंतर परंपरानो-हजी सुधी प्रथम कोणे ब्राह्मणो पालेथी तेनो स्वीकार को निर्णयात्मक रीते निकाल थयो नथी. वळी ते ज.. हतो; तेनो निर्णय करवो कठण छे. कारणके यौद्धो- णावे छ के 'वी शदीभोलधी तो जैनो, तेमना मां जेम, बुद्ध-निर्वाण पछीनी प्रारंभनी ज शताब्दि- जेवा वीजा अनेक संन्यासिवर्गों के जे फक्त अप्रओमां पच्चीस बुद्धोनी उपासना दाखल थई हती, सिद्ध अने अस्थिररूपे पोतानं जीवन गाळता हता तेम चोवीश तीर्थंकरांनी मान्यता पण, महावीर तेमोथी सिन्नरूपे ओळखायाज न होता. तेथी मि. निर्वाण बाद अणुं करीने वीजी ज शताब्दिमा हुदा बार्थना अभिप्राय मुजय जैनोनी सांप्रदायिक परंपपडेला दिगम्बर तथा श्वेताम्बर ए वन्ने संप्रदायोने राओ ते मात्र बौद्ध परंपराओना अनुकरणरूपे, सरखी रीते मान्य होवाथी, ते पण तेटली ज जुनी तेमणे पोतानां अस्पष्ट मने अनिश्चित स्मरणोमांधी छे. परंतु या प्रस्ननुं निराकरण करवं ते अहीं कांई उपजावी काली छे. महत्वनो विषय नथी. कारण के पूर्वकृत विवेचन. मि. यार्थनो आ मत एवा अनुमान उपर स्थिर द्वारा जे निर्णयो उपर आपणे आन्या छीए ते उपर थपलो मालुम पड़े छ के जैनो पोतार्नु पवित्र ज्ञान तेनी बिलकुल असर थती नथी. ते निर्णयो एज छे एक पेदिथी बीजी पढिने थापवामां घणाज वेदरके-(१) जैनधर्म, ए बौद्धधर्मथी तहन स्वतंत्र कार रहा हता; अने तेम रहेवामां कारण ए छे के रीते उत्पन्न थएलो एक प्राचीन धर्म छे; तेनो वि- ते घणी शदीओ सुधी मात्र एक नानो अने अनुकास पण तेटलीज स्वतंत्र रीते थएलो के तेमज पयोगी संप्रदाय हतो. मि. बार्थनी आ दलीलमा तेमां यौद्ध धर्ममांथी विशेष काई लेवामां आव्युं हुं कोई प्रकारनुं वजन जोई शकतो नथी. हूँ अहीं नथी. तथा (२) जैनो तेमज वौद्धो ए वन्नेना तत्त्व. ए प्रश्न पूर्छ के-जे धर्म पोताना थोडाक अनुज्ञान, आचार, नीतिशास्त्र, भने जगदुत्पत्तिशास्त्रनुं यायिओ बडे एक मोटा प्रदेश उपर पथरापलो सूळ ब्राह्मणो-खास करीने संन्यासिमोने आ- होय ते धर्म पोताना मोलिक सिद्धान्तो अन परंपभारी. । राओने वधारे सुरक्षित राखी शके छ, के जे धर्मने अत्यार सुधीनी आपणी सघळी वी जैनोना एक मोटा जनलमूहनी धार्मिक जरूरीआतो पूरी पवित्र ग्रंथोमांथी उपलब्ध थती परंपरागत कथा- पारधानी होय छे ते आयेमांनी कई बाबत वधारे ओनी प्रामाणिकता उपर ज चालेली छे. परंतु एक संभवित छ? जो के एकंदररीतेआ प्रकारनी हेत्वाअतिशय विशाल ज्ञानवाळा अने कुशल विचारक भासात्मक तर्कपद्धतिथी आवा प्रश्ननो निर्णय विद्वाने ए प्रामाणिकताना संबंधमां जशंका करेली थचो तो अशक्य ज छे. उपर्युक्त वे पक्षोना प्रथम छे. ए विद्वान् ते मी. बार्थ (Barthi छे. ते पोताना पक्षमा याहुदी तथा पारसीमोनुं उदाहरण रजु करी Rerue de II Histoire des Religions,Vol. शकाय हे अने वीजा पक्षमा रोमनकथोलिक धर्मIII, p. 90. मां नातपुत्त नामनी एक ऐतिहासिक नो दाखलो आपी शकाय छे. परंतु जैनो संबंधी व्यक्किनो स्वीकार करे छ खरो, परंतु जैनोना पवि. प्रस्तुत प्रश्नना वादविवादनो निर्णय करवामां भावी

Loading...

Page Navigation
1 ... 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137