Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

View full book text
Previous | Next

Page 135
________________ -हारमावायरसमानणर ने बड़ी ही निप्पक्षता और उदारतासे लिग्ने जाते हरिसदाचार्यस्य समयनिर्णयः। त्मक दृष्टिसे लिरे हुए लेख भी इसमें रहते हैं और - सुप्रसिद्ध महान् रास्यशजनाचार्य हरिभद्गमूरिना है। यह सब संप्रदायोको समदृष्टिसे देखता है। . समयनिर्णय संबंधी जे संस्थत निवन्ध्र मुनिराज जैनग्रन्थोंकी समालोचनायें भी इसमें रहती हैं । श्रीजिनविजयीय पूनामां,मरापल 'प्रथम प्राच्य वि- प्रत्येक जैनीको इसका ग्रहक होना चाहिए। वार्षिक द्या पनिहन परिषद' यागळवांच्यो हताने जुदापेम्फ- मूल्य दो रुपया । ग्राहक वर्ष के प्रारंभ और मध्यले लेटमा छपाईने प्रकट करवामां आन्यो छे. निबन्ध बनाये जाते है । वर्ष दिवालीसे शुरू होता है। सरल भाषामा लखापलो होई अनेक अपूर्व ऐनि- mar हासिक मुद्दाओथी भरपूर छ. संस्कृत भाषा जाण नाणसागरण* माणिकचन्द-दिगम्बर जैनग्रन्थमाला । नार दरेक विद्वानने अवश्य वांचया लायक छ.कि इसमें दिगम्बर सम्प्रदायक संस्कृत और प्राकृत मान ४ आना. पाटेत खर्च जुहूं. भाषाकं अन्य प्रकाशित होते हैं और सब अन्ध ..समराइच्चकहा। सिर्फ लागतके मूल्यपर. बेचे जाते हैं। स्वर्गीय दानवीर सेट माणिकचन्द हीराचन्द जे. पी. के पाटमा संकाना प्रग्न्यात महात्मा याकिनी मह- स्मारकम यह निकलती है। अब तक इसमें नीचे जरासूनु श्रीहरिभद्रसूरए प्रशमरसपरिपूर्ण आ लिखे १५ मन्थ निकल चुके हैं। प्रत्येक लायब्रेरीमें कथा-धनी रचना करी छ, आना जोटानो बीजों उनका एक एक सेट मँगाकर रखना चाहिए। अंध मळवा दुर्लभ है. मूळग्रंथ प्राकृनमा छे. पण लघीयत्रयादसंग्रह, भट्टाकलंककृत मू० अम मूळ माथे तेनो संस्थत अनुवाद पण छपाव्यो - छ. आ पुस्तक मुंबईनी युनिवर्सिटीप पोताना पाध्य २ सागारधर्मामृत सटीक, पं० माशाधरकृत - पुस्तकोमा पण दाम्पल कर्य छे. आ ग्रंथमा समरा- ३ विक्रान्तकोरवीय नाटक, हस्तिमल्लकृत - दिस्य राजाना कल दवभवोनी वाती छे, तेमांना ४ पवनाथचरित, वादिराजकृत ॥ ,त्रण भत्री अमोप प्रकट कर्या छे. मृल्य म०-२-८-0 ५ मैथिलीकल्याण नाटक, हस्तिमलकृत । ६ आराधनासार सटीक, देवसेनकृत आ काव्य रत्नचन्द्र उपाध्याये रचेल छ. श्री. ७ जिनदत्तचरित्र, गुणभद्रकृत रस्नबन्द्र प्रसिद्ध श्रीहरिविजयमरिनी संततिमांना ८ प्रद्युम्नचरित्र, महासेनकृत. पक पंदित रत्न ले. काव्य घणुंज सरस अने सरल . ९ चारित्रसार, चण्डिरायकृत .छ, नेमा संस्थत भाषा द्वारा कृपणना पुत्र प्रद्युम्ननी रममय वाती वर्णववामां आवेल छ. म०-२-०-० १० प्रमाण-निणेय, विद्यानन्दकृत जैन साहित्य संशोधक कार्यालय. ११ आचारसार, वीरनन्दीकृत पोट खर्च जुहूं। टे. भारत जैन विद्यालय, फर्म्यु- १२ त्रिलोकसार सटीक, नेमिचन्द्रकृत समजवु सन कॉलेलरोड, पूनासिटी. १३ तत्वानुशासनादिसंग्रह, जैन-हितैषी। . १४ मनगारधर्मामृत सटीक, आशाघारकृत ३ रु. हिन्दीका सुप्रसिद्ध मासिक पत्र । इसमें दिग- १५ युक्त्यनुशासन सटीक मूल समन्तभद्र १ रु. म्बर और श्वेताम्बर दोनों संप्रदायोंके विद्वानोंक मिलनेका पत्तालेख रहा करते हैं । ऐतिहासिक लेवोंके लिए यह मैनेजर जैन अन्धरत्नाकर कार्यालय, बास नौरसे प्रसिद्ध है। अब तक इसमें 'अनेक महत्त्वके लंग्य निकाल चुके हैं। जैनधर्मपर तुलना हीरावाग, पो० गिरगांय, बंबई । प्रद्युम्नचारित्रम्।

Loading...

Page Navigation
1 ... 133 134 135 136 137