Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 110
________________ ९६ जैन साहित्य संशोधक · [भाग १ एक सुधारकना जेटलो प्रवादी बनी जवाना जोख. असंभवित लागे छे. वीजीए पण बाबत लक्ष्यमां मने उपाडवानी अवश्यकता रहेती नथी. हवे वखत राखवा योग्य लेके जैन धर्ममां वे संप्रदायो थया जतां ज्यारे महावीरना ते प्रतिस्पर्धिओ आ जगत- पछी तेना तत्त्वज्ञानमां वीलकुल फेरफार. थयो न मांथी अदृश्य थई गया हता, तथा तेओ द्वारा स्था. होतो-अर्थात् ते तद्दन स्थिरज रा हतुं. आनुं पित थएला संप्रदायो पण नामशेप थई गया हता, प्रमाण मात्र एज छे के आ बन्ने संप्रदायोना तत्त्वत्यारे महावीरना ए प्रवादो, के जे तेमना गणध- शानमां कोई विशेष उल्लेखयोग्य भेद नजरे पडतो रोएं स्मरणमा राख्या हता तथा तेओ द्वारा पाछ- नथी. आचारशास्त्रना विपयमां अलबत आ यन्ने ळनी शिष्यपरंपराने पण जे सोपवामां आव्या संप्रदायोमा केटलाक भिन्न भिन्न विचारो जोवामां हता, ते पाछळना लोकोमा महत्त्ववाळा न मनाया आवे छे, परंतु, अत्यारे पण ज्यारे श्वेताम्बरोमां होय ए स्वाभाविक छे. ए कोण कही शके एम छे लांवा समयथी, तेमना वर्तमान सिद्धान्तसमूहमा के जे एक जमानामां आ प्रकारना दार्शनिकोना विहित थपला घणाक आचारोनुं पालन बंध थएलं तत्त्वज्ञान विषयक विविध प्रवादो अने कलहो होवां छतापण तेओ तेनातरफउपेक्षा धरावतानथी व्यावहारिक उपयोगितावाळा जणाया होय तेज प्र- त्यारे तेवाज कारणने लईने ते वखते अस्तित्वं वादो अने कलहो, सर्वथा परिवर्तित थएला एवा भोगवता एवा तेमना पूर्वात्मक सिद्धान्तसमूहअन्य जमानामां पण तेवाज उपयोगी सिद्धान्तो ना विषयमा श्वेतास्वरोए तेटला बधा आवेशमां तरीके मनाई शके ? आ ज विचारानुसार, नवा आवी जई पोताना पूर्व साहित्यनो सर्वथा त्याग. जमानाना जैनसमाजने पोतानी सामायक परि- सुधां करी नांख्यो हतो एम मान, युक्तिसंगत. स्थितिने अनुकूल आवे तेवा एक नवा सिद्धान्तनी जणातुं नथी. आ उपरांत नवा सिद्धान्तनो जे समजरूर जणाई हशे अने तेने परिणामे, माकं मान य आपणे उपर निर्णीत को छे, ते समय पछी पण छ के, नवा सिद्धान्तनी रचना अने जूना सिद्धा- लांवा वखन सुधी पर्वो विद्यमान हतां एम मानवा-. न्तनी ( पूर्वोना ज्ञाननी उपेक्षा थवा पामी हशे. मां आवे परंत. आखरे ज्यारे पर्वोना प्रवादमय प्रो. वेवर' दृष्टिवाद अंगने नष्ट थवामांए, कारण साहित्य करतां नवा सिद्धान्तद्वारा जैन तत्त्वो जणावे छ के श्वेताम्बर समाज ज्यारे एक समये वधारे स्पष्टीते प्रकाशित थता देखावा लाग्यां अने एवी अवस्थाए आवी पहोंच्यो हतो के जे वखते - तेने पोताना (प्रचलित ) विचारो अने ते ग्रन्थमा त्यारे पर्वो स्वभाविक रीते ज, नहीं के तेमनी. त वधारे व्यवस्थासर लोको समक्ष सूकावा लाग्यां (एटिवादमा ) आलेखित विचारोनी वच्चे अत्यंत वृद्धिपूर्वक कराएली उपेक्षाने लीधे, अदृष्ट थयां अनुपेक्षणीय अंतर स्पष्ट देखाचा लाग्युं, त्यारे ए ता. चौद पूर्वोवाळु दृष्टिवाद अंग उपेक्षाने पात्र थयुं हतुं. परंतु, प्रो. वेबरनी आ कल्पनानी विरुद्ध श्वेता- आपणी प्रस्तुत चर्चा जे आ स्थळे समाप्त थाय म्बरोनी माफक दिगम्बरो पण, पोताना पूर्वी अने छ ते उपरया, हुं धालं छु के, आटली बायतो ते उपरांत अंगो सुद्धाने व्युच्छिन्न थएलां जणावंता प्रकटरीते लद्ध थपली छः-जैनधर्मनी उत्क्रांति होवाथी, हुं तेमना मतने मळतो थई शकतोनथी. (प्रगति) कोई पण समये कोईपण अत्यंत असो.. तेमज निर्वाणनी तुरतज पछीनी ये शताब्दिमां जैन धारण एवा बनावोथी, जबरदस्त अटकाव पामेली समाज पटली बधी झडपथी प्रगति करी लीधी नथी. बीज ए के आपणे आ उत्क्रांतिनी शरुआतनी होय के जेषी ते समाजना वन्ने मुख्य संप्रदायोने अवस्था उपरांत तेनी सधळी विविध अवस्थाओनो पोताना पूर्व सिद्धान्तनो त्याग करवा जेटली आव पत्तो मेळवा शकीए छीए, अनेत्रीजं ए के जैनधर्म ए श्यकता जणाई होय, एम पण मानी वेसवं तन निविवादीत स्वतंत्र मनाता एवा कोई पण धर्मनी माफक स्वतंत्ररीते उत्पन्न थएलो छे-परंतु कोई १. Indische Studien, IVI, p. 248. अन्य धर्म अन खास करीने बौद्धधर्मनी शाखा रूपे

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