Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 114
________________ १०० wwwwwwwwwwww.m www.www.wwwwwwwwwwhhane जन साहित्य संशोधक [भाग १ अकबरीमा आपेली नामोनी उक्त लांबी टोपमांनी प्रेमी विद्वाने, हीरविजयसूरिने केटलेक अशे उचित घणीक व्यक्तिओनी, बीजा बीजा इतिहासो उपरथी स्थान आपी, प. बावतमा इतिहासवेत्ताओथी थती पण ओळखाण आपवा बावत महेनत लोधी छे; आवती मोटी भलर्नु काईक संशोधन कर्यु छे. परंतु 'हरिजीसूर' नाम माटे तेणे कोई पण नोध सूरीश्वर अने सम्राट्मा मुनिराज विद्याविजयकरी नथी. जीए एज विषय अनेक ऐतिहासिक प्रमाणोना ___ आईन-ए-अकवरीमांनुं आ नाम सुप्रसिद्ध आधारे संपूर्णरीते आलेख्यो छे अने सम्राट जैनाचार्य हीरविजयसूरिन छे, एवं ज्ञान कराववानुं अकबरना इतिहासमां जगद्गुरु हीरविजयसूरि मान अमारा सद्गत स्नेही श्रीयुत चिमनलाल के महत्त्वनुं स्थान धरावे छे ते सारी पेठे समजा. डाह्याभाई दलाल, एम्. ए. ने घटे छे. तेमणे बना- व्यु छे. पुस्तकने प्रामाणिक बनाववामाटे मुनिजीए रसथी निकळता जैनशासन' नामक एक साम. यथेष्ट संभाळ लीची छे. परिशिष्टमां जे केटलाक यिक पत्रना, वीर संवत् २४३९ ना दीवाळीना कारसी फरमानो आप्या छे, ते आज सुधीमांजाखास अंकमा 'हरिविजयसूरि अथवा अकवरना णमा नहिं आवेला एवा छे अने तेथी पुस्तकनी दबरमां जैनो' ( HIRAVIJAYASURI महत्तामा उपयोगी उमेरो थयो छे. हीरविजयसूरि, or THE JAINAS AT COURT OF अकबर अने अबुल फजल विगेरेनां चित्रोथी पुस्तAKBAR ) एवा मथाळा नीचे, 'C' एवी संक्षि- कनी शोभा वार आकर्षक बनी छे. परंतु, हीर प्त सही लाथे, एक प्रामाणिक लेख इंग्रेजीमां विजयसूरीनी जे मूर्ति- चित्र आप्यं छेते तेवू सुन्दर प्रकट कराव्यो हतो.' ते लेखमांज:भाई श्रीदलाले अने आल्हादक नथी, तेथी कोई वीजीवधारे सुन्दसौथी प्रथम पुरातत्वज्ञोने ए अज्ञात वावतनी राकृति मूर्तितुं चित्र मेळववामां आव्युं होत तो माहीती आपी हती के आईन-ए-अश्वरीमा जे वधारे ठीक लागत । 'हरिजीसूर' एवं नाम मळी आवे छेते नाम अंते, आq उपयोगी, प्रामाणिक अने मूल्यवान् वीजा कोईनु नथी पण जैन समाज अने जैन इति. पुस्तक लखवा माटे मुनिराज विद्याविजयजीनुं पुनः हासमां प्रसिद्ध एवा आचार्य हरिविजयसूरिनु ज एकवार अभिनंदन करी अमे अमारुं वक्तव्य समाछे. अने तेनी लाथे तेसणे संक्षेपमा हरीविजयसूरि तकरीए छीए अने ट्रेक जैन अने जैनेतर विद्वान् अने अकवरना समागमनो सप्रमाण इतिहास ने एक वार आ पुस्तक अवश्य जोई जवानी खास पण आलेखी बताव्यो हतो. भलामण करीए छोए, भाई श्रीदलालनो ए मौलिक आविष्कार वांचीने ज प्रसिद्ध पुरातत्त्वज्ञ मि. विन्सेन्टए. स्मीथ साहेवे 'अकवरना जन गुरुयो'(THE JAIN TEACHERS OF AKBAR) ए नामनो तत्त्वार्थ परिशिष्ट मूल अने भाषांतर. एक महत्त्वनो इंग्रेजी निबन्ध 'भांडारकर स्मारक [' मूल कर्ता आगमोद्धारक आचार्य श्रीसागनिवन्ध संग्रह' (R.G.Bhandarkar Comme- रानंद सरीश्वरजी.-भापांतर कर्ता मुनी (?) मा moration Volume) मा प्रकाशित कराव्यो हतो, अने तेमां अकवरना जीवनमां हीरविजयसू- मु. अमदाबाद. मूल्य ज्ञानाभ्याल.' पृ.१८-१४८, नसागरजी. प्रसिद्धकर्ता मास्तर उमेदचंद रायचंद. रिए भजवेलो भाग संक्षिप्त परंतु स्पष्ट रीते वता __ समग्र जैन साहित्या वामां आव्यो हतो. तेवीज रीते पोताना 'अकबर' एक तत्त्वार्थसूत्र ज एवो नामना प्रसिद्ध पुस्तकमां पण ए साचा इतिहासः पमा जैन धर्मनं संपूर्ण स्वरूप समजी शके छे. ए र ग्रंथ छे के जैना अध्ययनथी जिज्ञासु मनुष्य संक्षे१ ए लेख पाछळयी, वडोदराथी प्रकट थता ' लाईबेरी ग्रंथ जैन धर्मना श्वेतांबर अने दिगंबर-बन्ने संप्रदा. मेसेलेनी' नामना त्रैमासिकमां पण प्रकाशित थयो हतो. योने समानभावे पूज्य अने मान्य छे. अलवत्, बन्ने

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