Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 69
________________ नमोत्थु णं समणस्स भगवो महावीरस्स। जैन सा हि त्य सं शोध क Aanan-AAAAAAAAAAAAAMARARAMANManner--ARMAAAAAAAAARAN ansoorAAAAAAAAAPAAAAAAAAAAAAAAIP-AAAAAAA भाग १] गुजराती लेख विभाग [अंक २ - - AARAMMAAMANAMARAwammanmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm AnanAAAAMAnnaranormannm N-Anand सोमप्रभाचार्य विरचित कुमारपाल प्रतिबोध । (अन्य परिचय ) [घडोदराना विद्याविलासी नृपति श्रीसयाजीराव गायकवाड सरकार तरफथी, गायकवाड ओरिएन्टल सीरीझ' नामे ५-६ वर्षथी एक ग्रन्थमाला प्रकट थवा लागी छ जेनी अंदर संस्कंत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषामोमां लखाएला प्राचीन अने दुर्लभ्य प्रन्यो प्रकाशित थाय छे. ए ग्रन्थमालाना मूल उत्पादक अने मुख्य संपादक स्वर्गस्थ विद्वान् श्रावक श्रीयुत चिमनलाल डाह्याभाई दलाले पाटण अने जेसलमेर (राजपूताना ) ना जूना जैन पुस्तक भंडारोनुं सूक्ष्म निरीक्षण करी तेमाथी केटलाक उत्तम अने अलभ्य-दुर्लभ्य जैन ग्रंथो, उक्त सीरीझमां प्रकट करवा माटे खास चुटी काढ्या इता. ए ग्रंथोमां सोमप्रभाचार्यरचित कुमारपाल प्रतियोध नामनो पण एक प्राकृत भाषामय मोटो ग्रंथ छ जेनु संपादन कार्य स्वर्गस्थ भाई दलाले घणा आग्रहपूर्वक मने सोप्यु हतुं. ए ग्रंथ हवे छपाईने तैयार थयो छे. एनी प्रस्तावना जे मारा तरफथी लखवामां आवी छे, ते जैन साहित्य संशोधकना वाचक्रोने खास वांचंचा लायक होवाथी, अत्र प्रकट करवामां आवे छे. मूल पुस्तकमां आ प्रस्तावनानो इंप्रेजी अनुवाद तथा संस्कृतसार आपवामां आन्यो छे.-मुनि जिनविजय!] स्तुमस्त्रिसन्ध्यं प्रभुहेमसूरेग्नन्यतुल्यामुपदेशशक्तिम् । अतीन्द्रियज्ञानविवर्जितोऽपि यः क्षोणिभर्तुळधित प्रवोधम् । सत्त्वानुकम्पा न महीभुजां स्यादित्येप क्लुप्तो वितथः प्रवादः । जिनेन्द्रधर्म प्रतिपद्य येन, श्लाघ्यः स केषां न कुमारपालः ॥ . -सोमप्रभाचार्य । . गुजरातना चौलुक्यवंशना प्रसिद्ध नृपति कुमारपालने जैनाचार्य हेमचंद्रसूरिए समय समय उपर जे रीते जैनधर्मना सिद्धान्तोनी, विविधकथा-आख्यानो द्वारा बोध आप्यो हतो, अने ते घोधनुं श्रवण

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