Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 83
________________ डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोनी प्रस्तावना ( प्रथम भाग. ) [ अनुवादक - शाह अंबालाल चतुरभाई, बी. ए. ] [ प्रथम अंकमां डॉ. हर्मन जॅकोयीनी कल्पसूत्रनी प्रस्तावनानो अनुवाद आपवामां आव्यो छे. आज आ नीचे, ' पूर्वना पवित्र पुस्तको (Sacred Books of the East ) ' नामनी सुप्रसिद्ध ग्रंथमालामां 'जैन सूत्रो' नामे तमनां जे ये पुस्तको प्रसिद्ध थयां छे, तेमाना पहेली पुस्तकनी (नं. २२ ) प्रस्तावनानी अनुवाद उपस्थित करवामां आवे छे. ए पुस्तकमां आचारांग अने कल्पसूत्र, एम वे जैन सूत्रोना भाषांतरो प्रकट करवामां आयां छे. -संपादक. ] जैन धर्मनी उत्पत्ति तथा उत्क्रांतिना संबंधमां विवेचन करती वखते, केटलापक विद्वानो हजी पण, जे शंकाशील कथन करयुं रीतसर समजी रह्या छे, ते आ विषयमा समग्र प्रश्ननी वर्तमान परिस्थिति जातां बिलकुल योग्य होय तेम जणातुं नथी. कारण के हवे जैन धर्मनुं साहित्य मोटा प्रमाणमां उपलब्ध थपलुं छे अने तेथी जे फोई विद्वानने ए धर्मना प्राचीन इतिहासनां साधनोने संगृहीत करवानी इच्छा होय तेने तमांथी तेवां पुष्कळ साधनो मन्त्री शके तेम हे. अने वळी आ साधनो पण गवां नथी के जेथी, तेमां आपणन अश्रद्धा राखवानुं कारण मळे. आपण जाणीए छीए के जैनोना पात्र पुस्तक - अर्थात् आगमो-प्राचीन छे.जेने आपण संस्कृत काळनुं साहित्य ( Classical literature ) कहीए. छोए ते करतां स्पष्ट रीते धारे प्राचीन है. ए भागमोनी प्राचीनताना संवं धमां कहे जोईए के तेमांना वणाक ग्रंथो, उत्त for यौना सौथी प्राचीन ग्रंथोनी साथे तुलनामां आवी शके तेवा छे. हवे बौद्धोना ए ग्रंथी जो बुद्ध अने वौद्धधर्मन इतिहास तैयार करवामां साचां साधनरूपं स्वीकारायां छे तो तेज कोदिनां जैनोनां पवित्र पुस्तको तेमना इतिहासनां प्रामा णिक साधन तरीके शा माटे न स्वीकारी शकाय, ते समजी का नथी. जो या ग्रंथी ( जैन आगमो ) परस्पर विरुद्ध कथनार्थी भरेला होत अथवा तो तेमां आवेली तारीखोथी परस्पर विरोधी अनुमानो उभां थतां होत तो आवां साघनोना आधारे उत्पन्न घपला वधा सिद्धान्तोने शंकाशी: लमने जोवानुं आपणा माटे न्याय्य गणात. परंतु जैन साहित्यनुं स्वरूप आ बावतमां बौद्ध साहित्यधी पण बहुज अल्पभ्रंशे जूटुं पडे छे, खास करीने उत्तरीय बौद्ध साहित्यथी. तो पछी शा माटे, आटला बधा लेखको, जैनसाहित्यमाथी मळी आवती ते धर्मनी उत्पत्ति अने स्थितिथी, भिन्न प्रकारनां अनुमानो करता हशे . आनुं कारण स्पष्ट छे, अने ते युरोपीय विद्वानोए जैनधर्म भने बौद्धधर्ममां परस्पर वास्तविक अगर आभासात्मक जे साम्य खोळी काढयुं छे, तेज छे. ए विद्वानानुं एवं मानवु छे के आ बन्ने धर्मोमां जे आटलं वधुं साम्य दृष्टिगोचर थाय छे तेथी, ते परस्पर स्वतंत्र नहीं होवा जोईए, परंतु एक बीजामांथी उत्पन्न थ एला अथवा एक बीजानी शाखा रूपे प्रवर्तेला होधा जोईए. आ प्रकारना, कारण उपरथी करातकार्यना अनुमानात्मक अभिप्रायश्री, घणा विवेचको- समालोचकोनी दृष्टि कलुषित थपली छे, अने अत्यारे पण तेम थती जोवामां आवे छे. आपछीनां पृष्ठोमां हुं ए मिथ्याभ्रांतिने दूर करवानो प्रयत्न करीश भने जैनागमो जे खरेखरी प्रामाणि

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