Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 86
________________ ७२ जैन साहित्य संशोधक [ भाग. पण अन्य अढार संयुक्त राजाओ जेवो मात्र एक महावीर तथा बुद्ध-बन्नेए प्रकटरीते पोतपोताना भागीदार राजा हतो अने तेलना जेटलीज ते कुइम्बनी सहायता अने लागवगनो उपयोग कर्यो सत्ता भरावतो हतो. तथा, ते उपरांत तेनी सत्ता हतो. तेमना बीजा प्रतिस्पर्धिोनी अपेक्षाए तेमनो वैशालीनाराज्यशासनथी नियन्त्रित हती. आथी आ- अधिक उत्कर्ष थवामां केटलेक अंश देशना प्रतिपणे समजी शकीए छीण के प्रथम तो चेटकनो प्र- ठित कुटुम्बो साथे तेमनो जे विशिष्ट संबंध हतो, भावए कांई विशेषनहीं हतो,अने बीजं तेनो पण उप- ते पण एक मुख्य कारण छे. योगमात्र बौद्धोना प्रतिस्पर्धी पवा जैनोना पक्षमांज पोताना मातृपक्षद्वारा महावीर, मगधना राजवथयो हतो; तेथी बौद्धोए तेनो उल्लेख को नहीं शसाथे पण सगपण धरावता हता; कारण के होवो जोईए. जैनोए तेनी स्मृति कायम राखी, तेनुं चेटकनी चेल्लनो नामनी पुत्रीन लग्न, राजगृहमा कारण ए छे के, ते एक तो पोताना तीर्थकर महा. वसता, मगधना राजा सेणिय-बिम्भिसार अथवा वीरनो मामो थतो हतो अने बीजं ए धर्मनो ते बिम्बिसारनी साथै थएलु हतुं. जैनो अने बौद्धो आश्रयदाता पण हतो. आ चेटक राजानी लाग- बन्नेएं आ राजानी, महावीर अने बुद्धना मित्र तथा वगने लईनेज वैशाली जैन धर्मर्नु एक संरक्षण आश्रयदाता तरीके स्तति करी छे. परंत सेणियना स्थान बन्यु हतु अने तेथीज बौद्धोए तेने पाषंडी- पुत्र कुणिक अथवा तो बौद्धोना कहेवा प्रमाणे ओना एक मठ तरीके जणाव्यु छे. ____ अजातशत्रु-जे वैदेही राणी चेल्लनाना पेटे अवमहावीरना कौटुम्बिक संबंधनुं आ निरूपण तयाँ हतो, तेणे पोताना राज्यना प्रारंभकाळमां करवामां मारो हेतु कांई कुतहलरूप नथी, जो बौद्धो तरफ कांई पण सहानुभूति बतावी न हती; तेम होत तो तो हुं आ स्थळे ते संबंधी सघळी परंतु ज्यारे बुद्धना निर्वाणना आठ वर्ष बाकी रयां ऐतिहासिक हकीकत-पछी ते गमे तेटली नजीवी हतां त्यारे ते वद्धनो आश्रयदाता बन्यो हतो. ते होत, भेगी करत. परंतु कौटुम्बिक संबंध विषयक वखते पण ते सद्भावपूर्वक बुद्धधर्मानुयायी थयो आमाहीती अपवातुं खास कारण ए के के ते द्वारा हतो तेम तो आपणे मानी शकता नथी. कारण ए आपणे महावीरनी सफळतानी प्रामिन रहस्य शोधी छे के जे माणस खल्लीरीते पोताना पितानुं खून शकीए छीए. महावीर तथा बुद्ध ए बन्ने कृष्णसंबंधी दंतकथा १ जुओ, वॉरननी निरयावली सूत्रनी आवृत्ति पृ. २२. बौद्धो चेल्लनाने वैदेहाना नामे ओळखे छे. तिवेटना बद्ध चरिओमां वर्णवेला यादवो जेवा तथा वर्तमानकालीन त्रमा तेनु नाम श्रीभद्रा आपलं छे के जे आपणने चेटकनी रजपूतो जेवा एक जातना जागीरदार लामंत मंडळमां जन्म्या हता. आवी जातना जागीरदार मी सुभद्राना नामर्नु स्मरण करावे छे. See Schiefnसामन्त मंडळोमा कौटुम्बिक संबंधो घणा मजबुत er in Me'moires de l'Acade'mi'e Impe'riअने चिरस्मरणीय होय छे'. ale de St. Pe'lersburg, lome IV, p. 258. __ आपणे स्पष्ट जाणीए छीए के युद्ध मुख्यत्वे करीने २ घणुं करीने ते मात्र सेणिय अथवा श्रेणिकना नामेज अमीर वर्गनेज पोतानो उपदेश आपता हता, भोळखाय छ, तेनुं पूरूं नाम दशाश्रुतस्कन्धमां आपलं के जैनो पण प्रारंभमां ब्राह्मणो करतां क्षत्रियोने ऊंचा जुआ वेबर, Ind. Stud. XVI, p. 469. मानता हता. पोताना मार्गनो प्रसार करवामां, ३ आ बन्ने नामो एकज व्यक्तिवाचक होय तेम लागे छे. कारण के बौद्ध अने जैन ग्रंथकारोना कथनानुसार ते उदा. १जैनो महावीरना सगाओनां नामो तथा गोत्रो जणा- यिन अथवा उदयभद्दक-जे जैन अने ब्राह्मण ग्रंथामा ववामांज मात्र चोकस जणाय छे. तेश्रो तेमना संबंधी वीजु जणाव्या प्रमाणे पाटलिपुत्रनो वसावनार हतो तेनो-पित कोई विशप लखता नथी. कल्पसत्र, जिनचरित्रो १०९, इतो. २ जो कल्पसूत्र, जिनचरित्रो १७ अने १८, ४ वैौद्धो पण ए हकीकतवाळी विस्तारयुक्त कथा आप

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