Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

View full book text
Previous | Next

Page 84
________________ जैन साहित्य संशोधक . [ भाग १ . कता अने प्रतिष्ठाने पात्र छे ते पुरवार करी मापीश. कोना इष्टिकागृहमां उतर्या हता. आ. स्थाननी आपणे आपणी चर्चानो प्रारंभ महावीर विषयक नजीकमांज अम्बापाली वेश्यानुं अम्बपालिवन ऊहापोहथी करीशं के जेओ जैनधर्मना संस्थापक, नामर्नु उद्यान हतुं, जें तेणे वृद्ध अने तेमना संघने निदान तेना आतिम तीर्थकर हता. अहीं मारे समर्पित कयें हतुं. त्यांधी तेओ वेसाली गया, अने. जणाची देवं जोईए के, महावीर एक अर्वाचीन सं. त्यां लिच्छविओना सेनापतिने, जे नियो प्रदाय द्वारा उभी करेलो अथवा कल्पी लीधेलो नो एक श्रावक हतो, ' पोताना धर्मनो अनुमात्र सांकेतिक पुरुष छ, के जे संप्रदाय पोताना यायी बनाव्यो. आ उपरथी बौद्धोनुं कोटिग्गाम कल्पित संस्थापकना मिथ्याकाल पछी घणी शता- अने जैनोर्नु कुण्डग्गाम ए बन्ने एकज होय तेम ब्दिओ बाद उत्पन्न थयो हतो, ए जीतनां भ्रमने दूर घणुंज संभक्ति लागे छे.नामना साम्य उपरांत मा. करवा माटे पुरतुं साहित्य मळी चूक्युं छे..... तिकोनो उल्लेख के जे ज्ञातिको स्पष्टरूपेमहावीरनी श्वेतांबर तेमज दिगंबर-ए बन्ने जैन संप्रदायो जन्मजातिवाळा ज्ञात क्षत्रियो जछे-तथा सीह जणावे छे के महावीर कुण्डपुर अथवा कुण्डनामना. नामना जैननो उल्लेख पण एकज बाबत तरफ राजा सिद्धार्थना पुत्र हता. जैनोनी एवी मान्यता अंगुली निर्देश करें.छे... . छ के आ कुण्डग्राम ते एक मोटुं नगर हतुं तथा आ उपरथी घणु करीने कुण्डग्गाम ए विदेहनी सिद्धार्थ ते एक त्यांनो प्रतापी राजा हतो. परंतु राजधानी सालीनुं एक मात्र परुंज हतुं. आ अनु. कपिलवस्तुं अने शुद्धोदनना संबंधमां बौद्धोना मानने, सूत्रकृतांड्ग १,३ माँ महावीरने जे 'वैसाकथनी माफक, जनानु पण आखरी वस्तुस्थितिनुं अर्थना विषयमा टीकाकारो तथा अर्वाचीन भाषांतरकारोनी अतिशयोंक्ति द्वारा कराएल एक मिथ्या क. गेरसमजुती थई होय. तेम.लागे छे. महापरिनिवान सुत्तना थन छ: कुण्डग्रामने आचारोगसूत्रमा एक सनिवेश भाषान्तरमा (S. B. E. Vol.. XI ) राइझ देविड्स, तरीके जंगावेलें छे के जेनो अर्थ टीकाकारें या- प. २४ नो नोटमां, आ प्रमाणे लखे छः -प्रथम 'नादिक त्रिओं अथवा सार्थवाहोर्नु विश्रामस्थान' एम शब्द वे वार बहुवचनमा वपरायो छे'परंतु त्यार पछी करेलो छ. आ उपरथी जणाय , के ते (कुण्ड- ताजी वार-एंटले छेल्ला अवान्तर वाक्यमा ते एक वचग्राम) एक नजीवें स्थान हशे. तेना संबंधमा मात्र निमां वपरायो छे. आनो खुलासो बुद्धघोष आम करे छे-'ए एटलोज संप्रदाय मळी आव छ के ते विदेहमां नामना जलाशयना काठा उपर, एज नामनां बे गामडां. आवलं हतुं (आचारांग सूत्र २,१५६. १७.) बौद्ध हता. परंतु मारा धारवा प्रमाणे यहुवचनमा प्रयुक्त थरले तेमंज जैन ग्रंथोमा प्रसंगे प्रसंगे मळी आवता नातिका शब्द तो क्षत्रियोनो वाचक छे, अने एकवचनी उलेखो उपरथी महावीरेनी जन्मभूमिना स्थाननो शब्द गिञ्जकावसथ' विशेषण, छे, जे महापरिनिन्जान आपणे योग्य निर्णय करी शकीए तेम छीए. बी. सत्तमा प्रथम स्थान निर्देश वखते, तथा महाग ६, ३:, द्धोना महावग्गसूत्रमा ओपणे वांचिए छीए के बुद्ध ५ मां, आवे छे. : आयी महापरिनिव्यानमा जे जे स्थळे.. ज्यारे कोटिग्गामा बसता हता त्यारे तेमने, ते नादिक शब्द एकवचनान्त होय त्या त्यां तेना, गिज्जका । स्थामनी पांसे आवेली वैशालीनामे राजधानीमाथी लिच्छविओं तथा अम्बापाली नामनी वेश्यो नादिक' एकप खोटं छे अने. महापरिनिंबान. 'आतिक' नाम राजधाना- वसथ' विशेष्यने अध्याहृत मानबुं जोईए. मारा मत प्रमाणे मळवा आवी हती. कोटिंग्गामथीं बुद्ध ज्यां जां- कूप खरू छ. मि. राहझ डेविड्झे पण भाषान्तरंनी अनुक्र तिको रहेता हता त्योंगया हता, अने त्या तेओजाति- मणिकामा 'नादिक ए पटना पासे छे.' एम जे. जणाव्यु १ जुओ ओल्डनबर्गनी आवृत्ति, पृ. .२३१, २३२; स्पष्ट जणाय छै के आं स्थान तथा कोटग्गाम एबन्ने स्थळो छे ते भूलभरेलुं छे. कारण के महावग्गनी कथा उपरथी भाषांतर( बीजो भाग ) पृ: १०४. Sacred Books of बेसालिनी नजीकमा हता.. the East, Vol. XVII. ... 1 जुओं - वेबर, Indisohg Studien, AVI, . .२जे सूत्रमा आतिका शब्द आवेलोछे ते सत्र p262.... धौनी महावग्ग श काए तेम छीए. बा. शब्द गिजकावसथ' न. विशेषण

Loading...

Page Navigation
1 ... 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137