Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 93
________________ अक २] डॉ. हर्मन जेकोधीनी जैन सूत्रोनी प्रस्तावना लेसननी चोथी दलील उपर आ छु. ते दलील ए बौद्ध भिक्षुना दश शीलो नीचे मुजब छ:छे के बौद्धो तेमज जैनो बन्ने जगतना इतिहासमुं हुं प्राणीनी हिंसा न करवानुं वत लउंछु. परिमाण बतावामा एटली मोटी काळसंख्याओ २९ चोरी न करवानुं बत लउंछु: घापरे छे के जे समर्थमां समर्थ कल्पनाशक्तिने ३हुं अब्रह्म-अपवित्रताथी विरमवार्नु नत लउंछ. पण आंजी नाखे छे अने त्रस्त करी दे छे. इत्यादि. ४ हुं असत्य न बोलवानुं व्रतल छु, अलबत, ए वात तो खरी छे के आ विषयमा ५ हुं प्रगति अने सदाचारनुं प्रतिबन्धक एy जैनो बौद्धोने पण पाछळ पाडी दे छे. परंतु, आ मद्यपान न करवानुं व्रत लडं छ. प्रकारनी कालगणनामां जैनो मात्र वौद्धोनेज मळता ६हं निपिद्ध काले भोजन न करवानुव्रत लउंछं. आवे छे एम कांई कही शकाय नहीं. ब्राह्मणीनां ७ हुं नृत्य, गान, संगीत अने नाटकोथी विरक पण आ बावतमा तेवांज वर्णनो आपणने मळी थवानुं बत लडं छु.। आवे छे. जैनांनी कालगणनात्मक पद्धतिनां परि- ८हुं हार, सुंगंधी लेपन तथा अलंकारो न वापमाणो, ब्राह्मणो तेमज बौद्धो बन्नेथी सरखी रीते रवानुं व्रत लउं छु. जुदां पडे छे. जैनोना उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी- ९ हुँ ऊंची अगर पहोली पथारीनो उपयोग नहीं रूप कालचकनी तथा ते दरेकना छछ आराआंनी करवातुं नत लांछं. कल्पना जेटले अंशे वौद्धोना चार महाकल्पो तथा १. हुं सुवर्ण तथा चांदीनो परिग्रह न करवान ८० नाना कल्पो के जे विश्वना क्रमथी थता सर्ग व्रत अंगीकार करुं छु. अनं प्रलयरूपी नाटकना अंको तथा दृश्यो जेधा आ उपरांत बौद्धधर्ममा अष्टांग शीलो ( अदंग. लागे छे, तेमनी-कल्पनाथी भिन्न छे, तेटलेज अंशे सील ) मानेला छे. तेमांना पहेलां पांच दरेक ते ब्राह्मणांनी युगो अने कल्पानी कल्पनाथी पण बौद्ध आचरवानां छे; परंतु छेल्लो त्रण खास करीने भिन्न छे. मारो एवो मत छे के बौद्धोनी कल्पना धर्मिष्ठ गृहस्थीने तो अवश्य पाळवा माटे भला. ते ब्राह्मणोनी युगपद्धतिनुं संस्कारित रूप छे अने मण करेली छ. ए अष्टांग शील आ प्रमाणे :जैनांना उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणारूप कालचक्रनी १. हिंसा न करवी. कल्पना ब्रह्माना दिवस अने रात्रिनी कल्पनाने २. चोरी न करवी. आधारे उत्पन्न थएली छे ३. असत्य भाषण न करवू. ४. मद्यपान न कर. प्रो. लेसननी त्रीजी दलीलनी चर्चा उपर मुलतवी राखबार्नु कारण एटलुज हतुं के ते दलील ५ ब्रह्मचर्य पाळg -(अधर्म्य एवी परलीसंग न करवो.) आहंसाना सिद्धान्त विषयक होवाथी तेने, ए बन्ने ६. समयविरुद्ध रात्रिए भोजन न करg. धोना अभ्य नीतिविषयक विचारी साथे धधारे सारी रीते चर्चवानी आवश्यकता है. प्रो. घेवरे' पा ७. हार, चंदन आदे सुगंधी पदार्थो धारण न करवा. जैनोना पंचमहाव्रतो अने बौद्धोना पांच मुख्य पापी ८. जमीन उपर मान सादडी पाथरीने खूछु, मन शालोनी वच्चे खास निकटवर्ती संबंध बताव्यो । चौद्धानां पांच व्रतो, नीचे आपेला जनयतिओनां छ; अने प्रो. विन्डिशें (Windisch) जैनोना । पांच महावतो साथे लगभग मळतां आवे छे:- . पंच महाव्रतोनी, बौद्धोनां दश शीलो ( दससील) ' साल) १. अहिंसा--प्राणीनी हिंसा न करवी. साथे सरखामणी करी छ. . ३. अस्तेय-नहीं आपेलुं न लेg. १. Fragment der Bhagavati, II, pp. . 175, 185. १. Rhys Davids, Buddhism, p. 160. २. Z. D. M. G.XXVIII, p. 222, note. २. Rhys Davids, Buddhism, pg. 139. - ---.. . २. सूनृत-जूकुं न बोलवं.

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