Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

View full book text
Previous | Next

Page 77
________________ अंक २] कुमारपालं प्रतिवोध परिचय 'डिडुआणापुर' मां रहेता हता तेथी राजा त्यां गयो. तेनी पासे एक बहुमूल्य मुक्ताहार हतो. तेने वैचा तेना द्रव्यथी त्यां एक 'चउचीसजिणालय ' नामे मोह जैनमंदिर बंधाव्युं अने पछी साधुपणू लई दत्तसूरिनो शिष्य थयो. साधुनत लईने तेणे अनेक प्रकारनां तपश्चरणो कर्या अने ऊंडो शास्त्राभ्यास करी यशोभद्रसूरि नामे आचार्यपद प्राप्त कयु. आचार्य थया पछी तेमणे लोकोने धर्मोपदेश आपवा जुदा जुदा स्थळोमा परिभ्रमण कयु, ज्यारे वृद्धावस्थाना योगे शरीर बहु शिथिल अने क्षीणप्राय थयुं त्यारे उज्जयंत (गिरनार ) तीर्थ उपर जई तेमणे अनशनवत अंगीकार कर्यु अने समाधिपूर्वक स्वर्गस्थ थया. तेमना शिन्य प्रद्युम्नसूरि करीने थया जेमणे 'ठाणयपगरण (स्थान• कंप्रकरण)' नामे ग्रंथ बनायो. तेमना शिष्य गुणलेनलूरि अने तेमना शिघ्य देवचंद्रसूरि थया. देवचंद्रसारिए प्रद्युम्नसरिरचित 'टाणयपगरण ' उपर टीका वनाची छे. तथा 'शांन्तिजिनचरित्र' लख्युं छे. ए देवचंद्रसूरि फरता फरता एक वखते धंधुका नामे गाममां गया. त्यां चच्च अने चाहिणी नामे मोढ जातीय वणिग्दंपतीनो चंगदेव नामे एक प्रतिभावान् बालक तेमनी पासे आवघा लाग्यो अने निरन्तर तेमनो धर्मवोध सांभाळचा लाग्यो. तेमना उपदेशी प्रबुद्ध थई बालक चंगदेव तेमनो शिष्य थवा तैयार थयो, अने तेमनी साथेज ते रहेवा-फरवा लाग्यो. फरता फरता देवचंद्वसरि खंभातमां आव्या, अने त्यां, ते बालकना मामा नामे नेमि द्वारा चच्च अने चाहिणीने समजावी-युझावी, तेने दीक्षा आपी अने चंगदेवना बदले सोमचंद्र नाम स्थाप्यु. अलौकिक बुद्धिशाळी यालक साधु सोमचंद्र थोडाज समयमा सकळ शास्त्रोनो अभ्यास करी समर्थ विद्वान् थयो अने गुरुप तेनी पूर्ण योग्यता जोई हेमचंद्र एवा नवीन नामनी साथे तेने आचार्यपद प्रदान कर्यु. हेमचंद्राचार्यनी घिनत्ताथी मुग्धथई सिद्धराज जयसिंह देव तेमना उपर बहु भक्तिभाव धरावतो हतो, अने ट्रेक शास्त्रीय बांबतना तेमनी पासे खुलासा मेळवी संतुष्ट थतो हतो. तेमना उपदेशथी सिद्धराजनी जैनधर्म उपर प्रीति थई हती, अने तेना उपलक्ष्यमा तेणे 'रायविहार ' नामे एक जैनमंदिर पाटणमां, अने 'सिद्धविहार' नामे एक मंदिर सिद्धपुरमा बंधाव्युं हतुं. सिद्धराजना कथनथी हेमचंद्राचार्य 'सिद्धहमव्याकरण' नामे सरींगपूर्ण शब्दशास्त्र बनाव्युं हतुं. हेमचंद्रचार्यनो अमृतोपम उपदेश लांभळ्या विना सिद्धराजने जरा पण चेन पडतुं न हतुं. आवी रीते. हेमचंद्रसूरिनो परिचय आपी अमात्य बाहडे कुमारपाल राजाने को के-'महाराज! तमने पण जो धर्मना यथार्थ स्वरूपने जाणवानी इच्छा होय तो भक्तिपूर्वक ए आचार्यनी पासे जई, मां पच्छा करो.' मंत्रीजें आ कथन सांभळी राजा हमेशां हेमचंद्राचार्य पासे जई धर्मबोध सांभळया लाग्यो. " आचार्यजीए प्रथम तो विविध दृष्टांतो अने आख्यानो द्वारा राजाने यथावसर प्राणिहिंसा, यूतरमण, मांसभक्षण, मद्यपान, धेश्यागमन अने धनापहरण इत्यादि दुराचरणोथी मनुष्य अन मनुष्यसमाजनी केवी अधोगति थाय छे, ते चारंधार समजावी, तेनी पासेथी, आखा राज्यमां तेषां दुराचरणोनो, राजाशाना रूपमा सर्वथा निषेध कराव्यो. तदनंतर, तेमणे कुमारपालन जैनधर्मप्रतिपादित देव, गरुअने धर्म तत्त्वनो विशिष्ट वोध आपवा मांड्यो. सद्देव, सद्गुरु, अने सद्धर्मनी उपासनाथी आत्मानी केवी प्रगति थाय छे अने असद्देव, गुरु, अने धर्मनी उपासनाथी केवी अवगति थाय छ, तेनी, विविध कथानको द्वारा स्पष्ट समजण आपवा मांडी. सरिना ए बोधथी कुमारपालनी जैनधर्म तरफ प्रीति वधती गई अने क्रमे क्रमे ते ए धर्म उपर अधिकाधिक अनुरक्त थतो गयो. जनधर्म उपरना पोताना अनुरागना ग्रंथकार सोमप्रभाचार्य आ ठेकाणे जणावे छे के-ते 'चउवीसजिणालय' मंदिर माजे पण त्यां (डिडुआणा पुरंमा) विद्यमान छे.

Loading...

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137