Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 79
________________ अंक २ ] कुमारपाल प्रतिवोध परिचय जैनधर्मना महान् पुरुषोनां दर्शन करवा तेथे त्यां रोकाया हता. ते यात्रिभोने जोईने कुमारपालना मनमां पण तीर्थयात्रा करवानी इच्छा थई, अने हेमचंद्राचार्यने पूछी यात्रानी तैयारी करवा मांडी. ज्योतिषि व्रतवेला शुभ मुहूर्तमां, हेमचंद्रसूरिना प्रमुखपणानीचे तेणे पोताना चतुरंग सैन्य अने चतुविघ संघ-साधु, साध्वी, आवक, श्राविका रूप जैन जनसमूह-साथै सौराष्ट्र देश तरफ प्रयाण कर्यु. मार्गमां आवतां ग्राम अन नगरोनां जिनमंदिरोनी पूजा-उपासना करता कुमारपालना ए महान् संघ वन ( गिरनार ) पर्वतनी नीचे आवेला गिरिनगर ( जुनागढ ) नी पासे जई पडाव नांख्यो. गिरनार पर्वतनो चढाव वह विषम होवाथी ( ते वखते उपर चढवा माटे पगथिओं वांधेलां न होतां ) राजा उपर चढ़ी नहीं शक्यो, तेथी प्रधान पुरुपोना हाथे पूजा आदिनी सामग्री मोकली दर्द पोतानी अशक्तता माटे खेद करतो ते त्यां नीचेज बेसी रह्यो. बाकी वीजा वधा यात्रिओ पर्वत उपर गयां अने जिनपूजा आदि तीर्थकृत्य करी यथावसरे पाछा नीचे आव्या. त्याथी ए संघ शत्रुंजय तीर्थनी यात्रा करवा गयो. त्यां वधा यात्रिओनी साथै राजा पण पर्वत उपर चढ्यो अने तीर्थनायक ऋषभदेवनी भक्तिपूर्वक पूजा - सेवा करी आनंदित थयो. शत्रुंजयना ए पवित्र जिनमंदिरनो जीर्णोद्धार कुमारपालनी आज्ञार्थी वाइड मंत्रिण, थोडा ज समय पहेलां कराव्यो हतो, तेथी ते मंदिर जोई राजा बहु खुशी भयो. आवी रोते गिरनार अने शत्रुंजय नामना साराष्ट्रना बने प्रसिद्ध जैनतीर्थोनी ढाट साथै यात्रा करी राजा पाछो पोतानी राजधानीमां आव्यो. ६५ 24 ****e vou गिरनार पर्वतना चढावनी विषमताना कारणे राजा ते उपर जे चढी नहीं शक्यो हतो अने तेना ली तीर्थपति नेमिनाथनी जे पूजा-अर्चा करी नहीं शक्यो हतो, तेथी तेने बहु खेद थयां करतो हसो. एक दिवसे पोतानी राजसभामां प्रसंगोपात वात निकळतां राजाए पूछयुं के गिरनार उपर लोकोने चढवा माटे सुगम एवो रस्तो बंधावी आपे पवो कोई पुरुष छे? ते वखते कविचकवती श्री श्रीपा ना पुत्र कवि सिद्धपाले ते कार्य माटे राणिगना पुत्र आम्रनुं नाम सूचच्युं राजाए कविनी सूचनानुसार आम्रने सौराष्ट्रनो दंडनायक ( सुबेदार ) नीमी गिरनार मोकल्यो भने त्यां पर्वत उपर पगधि बांधवानी हुकम कर्यो. तदनंतर, कुमारपाले अनाथ अने असमर्थ श्रावक आदि जनोना भरण पोषण अर्थे एक सत्रागार बंधाव्यो जेनी अंदर विविध जातनां भोजनो भने वस्त्रादि तेना अर्थिओने आपवामां आवतां हतां तेमज ते सत्रागारनी पासेज एक पौपधशाला बंधावी के जेनी अंदर रहीने धर्मार्थी जनो धर्मध्यान करता पोतानुं जीवन शांतरीते व्यतीत करी शके. सन्त्रागार अने पौषधशालानो कारभार चलावचा माटे श्रीमालवंशीय नेमिनागना पुत्र श्रेष्ठी अभय कुमारनी योजना करी हती. ते श्रेष्टी बहुज सत्यव्रत, दयाशील, सरलस्वभाव अने परोपकारपरायण हतो. तेनी आवा पुण्यदायक कार्य उपर थपली योग्य नियुकिने जोई काव सिद्धपोल राजानी योग्य प्रशंसा करी हती. त्यार याद आचार्य हेमचंद्रे कुमारपालने श्रावक धर्ममां पालवा योग्य १२ व्रतोनो विस्तार साथै बोध कर्यो. प्राचीन कालमां आनंद अने कामदेवादि परमं जैन गृहस्थोग जे रीते श्रावकधर्मनुं पालन कर्य हतुं, तथा प्रत्यक्षमां पण, खुद पाटण निवासी छड्डुअ नामना महान् धनाढ्य श्रावके जे रीते पोतानी पासे श्रावकना १२ व्रतोनो स्वीकार कर्यो हतो, तेनां उदाहरणो आपी हेमचंद्रमुरिए कुमारपालनी श्रावक - धर्म - अंगीकरण तरफ सुरुचि उत्पन्न करी. राजाय तेमना बोधानुसार एक राजर्षिने शोभे तेषी राते भावकव्रतनो श्रद्धा पूर्वक स्वीकार कर्यो, अने आवी रराते अंते कुमारपाले जैनधर्मनो पूर्ण स्वीकार करी ते एक परमार्हत जैन राजा थयो. जैन या पछी कुमारपालनी नित्यनी दिनचर्या आ प्रमाणे बताववामां आवी छे:- ते प्रति दिवस

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