Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 71
________________ ५७ inute 10 .......... .. aranwwwmararmnnnn अंक २] कुमारपाल प्रतिवोध परिचय जवा पुरतुं शान धरावनारा अने मक्षिकास्थाने मक्षिका चितरनारालहिआओ पासथी ए कार्य कराववामां आयतुं हतु. तेथी जना ग्रंथोनी नकलो करतां. ए घखते लहिआओना हाथे घणी अशुद्धिओ ते ग्रंथोमा दाखल थई गई हती. या ज कारणने लईने कुमारपाल प्रतिबोधना प्रकृत आदर्शमां पण लेखन-अशुद्धिओ घणा मोटा प्रमाणमां प्रविष्ट थई गएली जोवाय छे. आ पुस्तकनी नकल करनार कायस्थ पेतार्नु भापाज्ञान के हशे तेनुं अनुमान, पुस्तकना अंतमां तेणे जे संवत् विगेरेना उल्लेख चाळो पुष्पिकालेख लख्यो छे, ते उपरथी थई शके तेम छे. उल्लिखित ताडपत्र सिवाय एक वीलु पण ताडपत्र प्रस्तुत ग्रंथ मने मळ्युं छे, जे पाटणना संघवीना पाडाना नामे ओळखाता पुस्तकभंडारनी मालिकीनुं छे. ए ताडपत्र, उक्त ताडपत्र करतां खास जून अने विशेप शुद्धरीते लखाएलुं छे. परंतु ए घणुंज अपूर्ण--खंडित छे. एमां ५१ थी ते ३०५ नंबर सुधीनां पानां छे. आ ग्रंथना चतुर्थ प्रस्तावमा देशावकासिक व्रतोपरि जे पवनंजयनी कथा आपेली. छे तेना मध्यभागथी ज ए ताडपत्र खंडित थई गयुं छे. एनी साईझ २७"+२" लांबी-पहोळी छे. प्रत्येक पृष्टमां३ थी ५ लाइनो आवेली छे, अने दरेक लाइनमा १०५ थी १२० सुधी अक्षरो लनेला छे. आवी रीते प्रस्तुत पुस्तकनो अखंड एवो एक ज उपर्युक्त आदर्श मने मळवाथी (अने ज्यां. सुधी हुँ जाणी शक्यो छ, बीजो संपूर्ण प्राचीन आदर्श अन्यत्र फ्याये छे पण नहि) अने ते पण विशेप अशुद्ध होवाथी, आ ग्रंथना संशोधन- काम मारा माटे घणुंज कठण थई पडघु हतुं. सोमप्रभाचार्य ग्रंथकार सोमप्रभाचार्य एक सुप्रसिद्ध अने सुज्ञात जैन विद्वान् छे. तेमणे प्रस्तुत ग्रंथ विक्रम संवव १२४१ मां, एटले कुमारपाल राजाना मृत्यु पछी मात्र ११ वर्षे बनाव्यो हतो. आ उपरथी तेओ राजा कुमारपाल अने आचार्य हेमचंदना समकालीन हता ए स्वतः सिद्ध छे. तेमणे आ ग्रंथ, नेमिनागना पुत्र श्रेष्टी अभयकुमारना हरिश्चंद्रादि पुत्र अने श्रीदेवी आदि पुत्रिमओनी प्रीत्यर्थे, प्राग्वाटजातीय कविचक्रवर्ती श्री-श्रीपालना पुत्र कार्य सिद्धपालनी वसति (जैन मंदिर या जैन उपाश्रय ) मा रहीने रच्यो छे; तथा खुद हेमचंद्राचार्यना महेन्द्रमुनि', वर्धमान अने गुणचंद्र नामे विद्वान् शिष्योए तेने अथथी ते इति सुधी सांभळ्यो छे. अभयकुमार श्रेष्ठी, आ ज ग्रंथमा जणान्या प्रमाणे, कुमारपाल राजाए अनाथ अने असमर्थ जनोना भरण पोपण माटे खोलेला सत्रागार आदि धर्मादाय खाताओनो उपरी हतो. (जुओ पृष्ठ २१९-२०). कविचक्रवर्ती श्री-श्रीपाल गुजरातनो एक सर्वश्रेष्ठ कवि अने सिद्धराज जयसिंहनो घणो मानीतो तेम ज स्वीकृत भ्राता हतो. तेनो पुत्र सिद्धपाल पण उत्तम कोटिनो कवि होई कुमारपाल राजानो प्रीतिपान अने श्रद्धेय सुहृद् हतो. आ कविकुलना संबंधमां में अन्यत्र सविस्तर लख्यु छ, (-जुओ द्रौपदी स्वयंवर नामे सिद्धपाल पुत्र कवि विजयपाल रचित नाटकनी मारी प्रस्तावना.) तेथी अही पुनरावृत्ति करतो नथी. श्रीपाल कवि, सोमप्रभाचायना पूर्वाचार्य देवसूरिनो चरणोपासक हतो तेथी एकवि-कुटुंबनो, तेमना शिप्यसमुदाय उपर सविशेष अनुराग होय तथा ते साधु-समूहनो पण ए कुटुम्य उपर विशेष आदरभाव होय ते स्वाभाविक छे. सोमप्रभाचार्यना गुरुओ तथा अन्य साधुओ अणहिलपुरमा घj करीने ए कविकुटुंबना मकानोमां ज निवास करता हता. सोमप्रभाचार्ये पोतानो बीजो धृहदग्रंथ नामे सुमतिनाथचरित्र पण ए कुटुंबनी वसतिमां ज वसीने बनाव्यो हतो. , आ महेन्द्रमुनिए हेमचंद्राचार्यरचित अनेकार्थनामसंग्रह नामक कोप उपर अनेकार्थकरवाकरकौमुदी नामे टीका लखी छ,-जुओ, पीटर्सन रिपोर्ट १, पृ. ५१. २ वर्धमानगणिए कुमारविहारप्रशस्ति बनावी छे.-जुभो, पाटर्सन रिपोर्ट ३, पृ. ३१६. . ३ गुणचन्द्रगणिए, प्रबन्धशतकर्तृ महाकवि रामचन्द्रने नाट्यदर्पण नामक ग्रन्थ लखवामां..सहायता करी हती.

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