Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
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अंक २j जेसलमेरके पदयोंके संघका वर्णन
१०९ वेशाख सुदी १४ दिने शांतिक पुष्टिक हुतां श्रीसिद्धगिरीजी पर्वतपर चढ्या, श्रीमुलनायक चोमुखोजी खरतरवशीरा स्था दुजी वश्यां सर्व जुहारी मास सवा रया। उठे चढापो घणो हुवो । अढाइ लाख जात्री भेला हुवा । पुरव, मारवाड़, मेवाड़, गुजरात, ढुंढाड़, हाडोती, कछभुज, मालवो, दक्षण, सिंध, पंजाब प्रमुख देशारा । उठे लाण रू. १ सेर १ मिश्री घर दीठ दीवी जीमण ५ संघव्यां मोटा कीया जीमण १ बाई बीजु कीयो ओर जीमण पण घणा हुवा । श्रीचोमुखाजोरे वारणे आलामे गोमुख यक्ष चक्रेश्वरीरी प्रतिष्ठा करायनें पधराइ चोमुखाजीरो सिखर सुधरायो एक नवी मंदिर करावण वास्ते नींव भराई । जुना मंदिरांरा जीर्णोद्धार कराया जन्म सफल कीयो । गुरुमाक्त इंण मुजब कीवी । इग्यारे श्री- . पूज्यजी था २१०० साधु साध्वी प्रमुख चौरासी गछांरा । तिहां, प्रथम स्वगछरा श्रीपूज्यजीरी भक्ति साचवी । हजार ५ रो नगद माल दीयो दूजो खरच भर दीयो पछे अनुक्रमें सारा दुजा श्रीपुजारी साधु साध्वीयारी भक्ति साचवी । आहार पाणी गाड़ीयारो भाडो तंबु चीवरो ठांणे दीठ रू ४१ दीया नगद । दुशाला वालांने दुशाला दीया । सेवग ५०० हा। जिणांने जणे दीठ रू० २१ दीया । रोटी खरच अलग । पहेरणारा मोजा मोषध खरची सारूं रुपीया चाहीज्या जिणाने दीया। पछे । म । श्रीजिनमहेंद्रसुरिजी पासे सिंघन्यां ३१ संघमाला पहरी जिणमें माला २ गुमास्ते सालगराम महेश्वरीने पहराइ । पछे बडा आडंबरसु तलेटीरो मंदिर जुहार डेरां दाखिल हुवा । जाचक्रांने दान दीनो । पछे जीमण १ कीयो । साधानें सिरपाव दीया । राजा डरे आयो । जिणनें हाथी सिरसावमें दीयो । दुजा मार्गमें राजवी नबाब प्रमुख आया डेरे, जिणाने, राजमुजब सिरपाव दीया। श्रीमुलनायकजीरे भंडाररे ताला ३ गुजरातीयारा था सु चोथो तालो संघव्यां आपरो दियो । सदावर्त सरू हेईज । ईसा २ मोटा काम करया पछे संघ कुशलक्षेमसुं अनुक्रमें राधणपुर आयो । जठे अंगरेज श्रीगोडीजीरा दर्शण करणने आयो । उठे पाणी नहीं थो सं गेबाउ नदी नीसरी । श्रीगोडीजीने हाथारे होदे विराजमान कर संघनें दरशण दिन ७ इकलग करायो चढापेरा साढा तीन लाख रूपीया माया सवा महीनो रया, जीमण घणा हुवा । श्रीगोडीजीरे विराजणने बडो चोतडो पक्को करायो ऊपर छतरी बणाई । घणो द्रव्य खर्यों बडो जश आयो अक्षत नाम कीयो । साथे गुमास्तो महेश्वरी शालगरांम हो जिणनें जैनरा शिवरा सर्व तीर्थ कराया। पछे अनंक्रमें संघ पाली आयो । जीमण १ करनें दानमलजी कोटे गया पछे भाइ ४ जेसलमेर माया । डेरा दरवाजे बाहर कीया पछे सामलो बडा ठाठमुं हुवो । श्रीरावलजी सामा पधाया। हाथीरे होदे, संघव्याने श्रीरावलजी आपरे पुठे बेषाणने सारा शहिरमें हुय देहरा जुहार ऊपाश्रये आय हवेल्यां दाखल हुवा । पछे सर्व महेश्वरी वगैरे छत्तीस पानने लुगायां समेत पांच पकवानसुं जीमाया । ब्राह्मणाने जणे दीठ रू० १ दक्षणारो दीयो पछे श्रीराउलजी जनाने सहित संघव्यारे हवेली पधाया। रूपयांसुं चोतरो कीयो । सिरपेच कंठी मोत्यांकी कडा जडाउ दुशाला नगदी हाथी घोडा पालखी निजर कीया । पाछा श्रीरावलजी इण मुजब हीज शिरपाव दीयो। एक लोद्रवोजी गाम तांबापत्रां पट्टे दीयो इतो इजारो कीयो।

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