Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 59
________________ जैसलमेर के पट संघका वर्णन दुद्दा अठार से छत्रे जेठमास सुदि दोय । लेख लिख्यो अति चुंप भवियण वांचो जोय ॥ १ ॥ सकल सुरि शिर मुगटमणि श्रीजिन महेंद्रसुरिंद | चरणकमल तिनके सदा सेवे भिवियण वृंद ॥ २ ॥ कीनो आग्रहथ की नेसलमेरु चोमास । संघ सहु भक्ति करे चढते चित्त उल्लास || ३ || ताकी आज्ञा पाय करि घरि दिलमें आनंद ।। ज्यं श्री त्युं रचना रची मुनि केसरीचंद ॥ ५ ॥ भुलो जो परमादमें अक्षर घ टही बाघ । लिखत खोट आइ हुने, सो खमीयो अपराध ॥ ५ ॥ || इति प्रशस्ति सम्पूर्णम् ॥ के निकालनेवालेके वंशज आज भी माजूद ह और मालबाके रतलाम वगैरह शहरोंमें उनकी बडी बडी दुकानें चलती हैं । इस संघ "जैसा बडा संघ, इसके बाद जैन समाजमेंसे फिर कोई नहीं निकला और शायद अब कोई निकाले वैसी आशा भी नहीं है । अंक २] इस कुटुंब संवत् १९२८ में, जेसलमेर जो एक बडा भारी प्रतिष्ठा महोत्सव किया था उसका लेख भी उपर्युक्त लेखवाले मंदिर में लगा हुआ है । यह लेख कुछ संस्कृत और कुछ मारवाडी भाषामें है । संग्रहकी दृष्टिसे इस लेखको भी यहांपर प्रकट कर दिया जाता है । " स्वस्ति श्रीविक्रमादित्यराज्यात् सम्वत् १९२८ शालीवाहनकृत शाके १७९३ प्रवर्तमाने मासोत्तममासे माघमासे धवलंपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ गुरुवासरे महाराजाधिराज महारावलजी श्री श्री १००८ श्री वैरीशालजी विजयराज्ये श्रीमज्जेसलमेरुवास्तव्य ओसवंशे बाफना गोत्रीय संघवी सेठ गुमानचंदजी तत्पुत्र प्रतापचन्द्रजी तत्पुत्र हिमतरामजी जेठमलजी नथमलजी सागरमलजी उमेदमलजी तत्परिवार मूलचंद सगरमल केसरीमल रिपभदास मांगीदास भगवानदास भीखचंद चिंतामणदास लुणकिरण मनालाल कन्नैयालाल सपरिवारयुतेन आत्मपर कल्याणार्थं श्रीसम - क्त्वोद्दीपनार्थ च श्री जेसलमेरुनगरसल्क अमरसागरसमीपवर्तिनि समीचीनाssरामस्थाने श्रीरिषभदेव जिनमंदिरं नवीनं कारापितं तत्र श्री आदिनाथ विवं प्राचीन वृहत्खरतरगणनाथेन प्रतिष्ठितं तत् श्रीजिनमहेन्द्रसूरि पदपंकज सेविना वृहरखरतरगणःघीश्वरेण चतुर्विधसंघसहितेन श्रीजिनमुक्तसूरीणां विधिपूर्वमहता महोत्सवेन शो - भन श्री मूलनायक चैत्ये स्थापितं । पुनः अनेक विद्यानामंजनशिलाका कारिता । पुनर्द्वतीयभुमिप्रासादे स्वप्रतिष्ठित श्री पार्श्वनाथचित्र मुलनायक स्थापितं पुनर्वाश विहरमान प्रतिष्ठा कृतं मंदिरस्य दक्षिणपार्श्वे दादासाहित्र कुशलसूरि गुरुमूर्ति स्थापनकृता । तथाच जिनदत्तसूरि कुशलसूरि चरणपादुका पुनरपि श्रीजिनंहर्पसूरि महेन्द्रसूरि चरणपादुका स्थापिता । १११: भाई सवाईरामजी के घरका आया । रतलामसुं चि० सोभागमल चांदमल सौभाग्यमलकी माजी, वगेरे आया । उदेपुरतुं चि० सिरदारमल तथा इणांरी माजी वेगेरे आया । ओर

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