Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
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जैन साहित्य संशोधक
[ माग १ आगे पिण इणारी हवेली-उदेपुर राणाजी, कोटेरा महारावजी, बीकानेरा किषनगढरा बुंदीरा राजानी इन्दोररा हुलकरजी प्रमुख सर्व देशांरा राजवी जनांने समेत इणारे घरे पघाऱ्या देणो लेणी हजारांरो कीयो । दिल्लिो पातसाहरी अंगरेजारे पातसाहरी दीयोडी सेठ पदवी हे सो विक्षातही ज है । पछे संघरी लाहण न्यातमें दीवी पुतली १ सोनेकी बाली १ मीश्री सेर १ घर दीठ दीवी । जीमण कीया पछे सेरमें ठावाठावाने सीरपाव दीया । यढमहिला मंदिरां लोद्रवे कपाश्रये बडो चढापो कीयो इण मुजवही ज
उदयपुर कोटे देणो लेणो कीयो । संघमें देहरासररो रथ हो जणरा इक्कावन सो लागा। . गडा सोनें रूपेरा २ जिणरा दश हजार लागा मंदिरा सोने रूपेरी वासणारा १५ हजार लागा । दुजा फुटकर सराजांमरा लाख १ रू० लागा।
हवे संघमें जावतो हो निणरी वीगत-तोफां ४, पलटनरा लोग १०००, अशवार १५००, नगारे नींसाण समेत । उपुर राणाजीरा असवार ५०० नगारे निसाणे समेत । कोटेरा महारावजीरा अशवार १०० नगारे नीसाण समेत । जोधपुररे राजाजीरा अस. वार ५० नगारे नींसाण समेत । पायदल १०० जेसलमेररा रावलजीरा, असवार २०० टुकरे नबावरा, असवार ४०० फुटकर असवार २०० घरु ओर अंगरेजी जावतो, चपडासी तिलंगा सोनेरी रूपेरी घोटेवाला जायगा २ परवानां बोलावा एवं पालख्या ७ हाथी ४ म्याना ५१ रथ १००, गाब्यां ४००, उठ १५००,इतरातो संवन्यारा घरु । संघरी, गाड्यां उठ प्रमुख न्यारा, सर्व खरचरा, २३०००००, तेवीसलाख रू. लागा ॥
इति संघरी संक्षेप प्रशस्ती लिखी। ओर–पण ठीकाणे २ धर्मरा काम करया सो संक्षपे लिखीये छै-श्री धुलेवे जीरे वारणे नोचत खांनो करायो गहणो चढायो, लाख १ लागा ।.मक्षीजोर मंदिररो जीर्णोद्धार करायो । उद्देपुरमें मंदिर, दादासाहिबरी छतरी, धर्मशाला कराइ । कोटेमें मंदिर धर्मशाला दादासाहिवी छतरी कराइ । जेसलमेरमें अमरसागरमें वाग करायो जिणमें मंदिर करायो जयवंतोरो उपाश्रय करायो लोवेमें धर्मशाला कराइ, गढमाथे जमी मंदिरके लिये लीवी वीकानेरमें दादासाहिवरी छतरी कराई इत्यादिक ठीकाणे २ धर्मरा आहीठाण कराया श्रीपुज्यजीरा चोमासा जायगा २ कराया पुस्तकांरा भंडार कराया भगवतिजी प्रमुख सुण्या प्रश्न दीठ २ मोती धन्य । कोटामें दोय लाख रूप्यादेकर बंदीखानो छोड़ायो वीज पांचम आठम इग्यारस चउदशरा उजमणा कीना इत्यादिक काम घरमरा कीया ओर कर रयाहे । इत्यलम् ॥
सवइयो ३१ सोशोमनीक जे साणमें बाफणा गुमानचंद ताके सुत पांच पांडव समान है। संपदामें अचल बुद्धिमें प्रबल रावराणाही माने जाकी कान है। देवगुरु धर्मरागी पुन्यवंत वडभागी जगत सहु वात मानें प्रमान है। देशहु विदेशमाह कीरत प्रकाश कीयो सेठ सउ हेठ कवि कर्त बखानहै ॥१॥

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