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कथाएँ बनाकर उनके गच्छों को बदलने की कोशिश जरूर .करी हैं पर समाज पर उनका कुछ भी प्रभाव न पड़ा और उल्टे वे तिरस्कार के पात्र समझे गए। ___उन प्राचार्यों की उदार वृत्ति का साक्षात्कार आज हजारों प्राचीन शिलालेख करा रहे हैं कि उन्होंने अपने उपासकों के मन्दिर मूर्तिएं की प्रतिष्टाएँ करवा कर अपने हाथों से उनको उपकेश वंशी लिखा है । फिर भी उन सब का उल्लेख मैं इस छोटे से निबंध में नहीं कर सकता। तथापि नमूना के तौर पर उन्हीं शिलालेखों से केवल वे ही वाक्य उद्धृत करूँगा कि जिन जातियों के आदि में उपकेशवंश का प्रयोग हुआ है। प्राचीन जैन शिलालेख संग्रह भाग दूसरा
संग्रहकर्ता-मुनि जिनविजयजी (मूर्तियों पर के शिलालेख)
लेखांक
वंश गोत्र और जातियों
लेखांक
गात्र और जातियों
। वंश गोत्र और जातियों
३०४ उपकेश वंसे गणधर गोत्रे । २५९ / उपकेशवंसे दरडागोत्रे ३८५ उपकेश ज्ञाति काकरेच गोत्रे २६० उपकेवावंसे प्रामेचागोत्रे उपकेश वसे कहाड गोत्रे
उ० गुलेच्छा गोत्रे - | उपकेश ज्ञाति गदइया गोत्रे ३८८ उ० चुन्दलिया गोत्रे . ३९८ उपकेश ज्ञाति श्रीमालचंडा- ! ३९१ उ. भोगर गोत्रे लिया गोत्रे
उ० रायभंडारी गोत्रे ५१३ | उपकेश ज्ञाति लोढ़ा गोत्रे. | २९५ उकेशवसिय वृद्धसजनिय
* प्रस्तुत पुस्तक के शिलालेखों के मात्र नंबर भंक ही पहो उदधत किये हैं।